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POCSO एक्ट मामले में पीड़िता बालिग, कर्तव्यों का पालन करने में विफल हो रहीं निचली अदालतें : हाईकोर्ट

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जबलपुर : हाईकोर्ट जस्टिस विवेक अग्रवाल व जस्टिस एके सिंह की युगलपीठ ने पॉक्सो एक्ट के मामले में फैसला सुनाते हुए तल्ख टिप्पणी की है. कोर्ट ने पॉक्सो एक्ट मामले में पीड़िता को बालिग मानते हुए अपीलकर्ता की सजा निरस्त की है. साथ ही अपने आदेश में कहा है कि मध्य प्रदेश राज्य न्यायिक अकादमी में नियमित प्रशिक्षण के बावजूद, निचली अदालतें न्यायाधीश के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करने में लगातार विफल हो रही हैं.

क्या है POCSO एक्ट का पूरा मामला?

दरअसल, बालाघाट से अपीलकर्ता ने अपने खिलाफ जिला न्यायालय द्वारा पॉक्सो, अपहरण सहित अन्य धाराओं के तहत आजीवन कारावास की सजा से दंडित किए जाने के मामले को चुनौती दी थी. अपील में कहा गया था कि पीड़िता ने खुद स्वीकार किया था कि वह अपीलकर्ता के साथ स्वेच्छा से घर छोड़कर हैदराबाद गई थी और दोनों ने शादी की थी. पुलिस ने हैदराबाद से उसे अभिरक्षा में लिया था और परिजनों के दबाव में उसने अपीलकर्ता पर आरोप लगाए थे.

 

अपीलकर्ता की ओर से दावा किया गया कि पीड़िता वयस्क है और दोनों के बीच सहमति से शारीरिक संबंध स्थापित हुए थे. मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार पीड़िता के शरीर में किसी बाहरी चोट के निशान नहीं थे. न्यायालय ने स्कूली में दर्ज जन्मतिथि के आधार पर पीड़िता को नाबालिग मानते हुए जिला कोर्ट ने उसे सजा से दंडित किया है.

पीड़िता की उम्र के सही प्रमाण उपलब्ध नहीं

याचिका में बताया गया कि एक्सरे रिपोर्ट के अनुसार पीड़िता की उम्र 17 साल बताई गई है. मेडिकल पाठ्यपुस्तक में शामिल मेडिकल ज्यूरिसप्रूडेंस एंड टॉक्सिकोलॉजी बुक के 24वें संस्करण के अनुसार ऐसे मामलों में दो साल तक की त्रुटि हो सकती है. हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि पीड़िता के माता-पिता व स्कूल शिक्षकों के अनुसार दाखिले के समय जन्म प्रमाण-पत्र के कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए गए थे. पीड़िता का स्कूल में दाखिला अप्रैल 2010 को हुआ था और स्कूल में उसकी जन्म तिथि 24 दिसम्बर 2004 उसके पिता के द्वारा दर्ज कराई गई थी. घटना दिनांक के एक महीने बाद एक्सरे करवाया गया था.

युगलपीठ ने उक्त तल्ख टिप्पणी के साथ अपने आदेश में यह भी कहा है कि न्यायालय ने सीआरपीसी की धारा 313 के तहत अभियुक्त का पूरक बयान दर्ज करना और डीएनए परीक्षण रिपोर्ट के संदर्भ में उसके विरुद्ध उपस्थित परिस्थितियों से उसका सामना करना उचित नहीं समझा. जिला न्यायालय के द्वारा अपने निर्णय में इसका डीएनए रिपोर्ट का उल्लेख किया था.

आयु के साक्ष्य असंतोषजनक, पीड़िता को माना जाए बालिग

हाईकोर्ट जस्टिस विवेक अग्रवाल व जस्टिस एके सिंह की युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि आयु के साक्ष्य पूरी तरह से असंतोषजनक होने की स्थिति में अस्थिभंग परीक्षण को आयु निर्धारण के लिए स्वीकार किया जा सकता है. विशेषकर जब अभियुक्त को इसके आधार पर संदेह का लाभ मिल सकता है. अस्थिभंग परीक्षण यद्यपि एक निश्चित परीक्षण नहीं है, सामान्यतः मानव की आयु के निर्धारण के लिए सर्वाेत्तम उपलब्ध परीक्षण के रूप में स्वीकार किया जाता है. यह निश्चित रूप से प्रवाहकीय है और इस राय में थोड़ा-बहुत परिवर्तन हमेशा संभव है. युगलपीठ ने इस आदेश के साथ पीड़िता को बालिग मानते हुए अपीलकर्ता की सजा निरस्त कर दी.

युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि उम्र निर्धारण के संबंध में एक्स-रे रिपोर्ट रिकॉर्ड में उपलब्ध थी. इसके बावजूद भी उसे प्रदर्शित किया गया है और न्यायालय ने उसे न्यायालय प्रदर्शक के रूप में चिह्नित करना उचित समझा है. युगलपीठ ने दायर अपील की सुनवाई करते हुए अपीलकर्ता को POCSO सहित अन्य धाराओं के तहत अधिकतम आजीवन कारावास के सजा के आदेश को निरस्त कर दिया.

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