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अमेरिकी टैरिफ से भारत की ट्रेड रणनीति पर मंडराया संकट, GTRI की रिपोर्ट में अहम सुझाव

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व्यापार : ट्रंप के टैरिफ के कारण भारत का अमेरिका को निर्यात वित्त वर्ष 2026 में 30 प्रतिशत गिरकर 60.6 अरब डॉलर पर आ सकता है। वित्त वर्ष 2025 में यह 86.5 अरब डॉलर दर्ज हुआ था। यह चेतावनी थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) ने सोमवार को दी। भारत पर ट्रंप ने 25 फीसदी टैरिफ लगाने की घोषणा की है और यह 7 अगस्त से लागू हो जाएगा। 

कुछ अपवादों को छोड़कर अधिकांश क्षेत्रों में होगा नुकसान

इसमें कहा गया कि कुछ अपवादों को छोड़कर अधिकांश क्षेत्रों में भारतीय निर्यात स्पष्ट रूप से नुकसान में है। नई अमेरिकी टैरिफ व्यवस्था में  फार्मास्यूटिकल्स, ऊर्जा उत्पाद, महत्वपूर्ण खनिज और सेमीकंडक्टर शामिल नहीं हैं।

किस क्षेत्र में कितना होगा नुकसान?

  • बुने हुए और बुने हुए वस्त्र जिनकी कीमत 2.7 अरब डॉलर है। इस पर 38.9 प्रतिशत और 35.3 प्रतिशत का भारी अमेरिकी शुल्क लगेगा। यह वियतनाम, बांग्लादेश और कंबोडिया की दरों से काफी अधिक है। इसके अलावा तौलिए और चादर जैसे तैयार वस्त्र, जिनके निर्यात से भारत को 3 अरब अमेरिकी डॉलर की आय होती है, पर अब 34 प्रतिशत शुल्क लगेगा।
  • भारत के 2 अरब अमेरिकी डॉलर के झींगा निर्यात, जो वैश्विक आपूर्ति का 32 प्रतिशत है, पर अब 25 प्रतिशत अमेरिकी टैरिफ लगेगा।
  • 10 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य के आभूषण निर्यात, जो भारत के वैश्विक आभूषण व्यापार का 40 प्रतिशत है पर अब 27.1 प्रतिशत शुल्क लग रहा है।
  • थिंक टैंक ने कहा कि भारत के 4.7 अरब डॉलर के धातु निर्यात मुख्य रूप से इस्पात, एल्युमीनियम और तांबा  को भी नुकसान होगा। 
  • भारत के इंजीनियरिंग निर्यात मशीनरी में 6.7 अरब डॉलर और ऑटो पार्ट्स में 2.6 अरब डॉलर पर अब 26 प्रतिशत से अधिक अमेरिकी टैरिफ लग रहे हैं।
  • 4.1 अरब डॉलर मूल्य के पेट्रोलियम निर्यात अभी भी टैरिफ मुक्त हैं, लेकिन भारत द्वारा रूसी कच्चे तेल के उपयोग पर जुर्माना लगाया जा सकता है। 
  • इसके अलावा उन्होंने कहा कि भारत के 10 अरब डॉलर के हीरा और आभूषण निर्यात पर ट्रंप ने 27.1 प्रतिशत टैरिफ लगया है। यह इस क्षेत्र में उसके वैश्विक व्यापार का 40 प्रतिशत है, इस क्षेत्र के लिए एक भारी झटका है।

जीटीआरआई ने दिया सुझाव

जीटीआरआई ने सुझाव दिया कि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सरकार को ब्याज समकारी योजना को पुनर्जीवित, साथ ही एक हेल्पडेस्क बनाने, व्यापार समझौते का रणनीतिक उपयोग करने और नए निर्याकतों को शामिल करने की जरूरत है। 

इसके अलावा पिछले साल बंद की गई ब्याज समानता योजना को दोबारा शुरू किया जाना चाहिए। थिंक टैंक ने सुझाव दिया है कि इस योजना को 15,000 करोड़ रुपये के वार्षिक बजट और पांच साल की प्रतिबद्धता के साथ फिर से लागू किया जाए, ताकि निर्यातकों, विशेष रूप से एमएसएमई को रियायती दर पर ऋण मिल सके।

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