अब प्रदेश में किसी भी जांच केंद्र का संचालन बिना पैथोलॉजिस्ट के नहीं किया जा सकेगा
Strictness: मध्य प्रदेश में लगभग 20 वर्षों बाद पैथोलॉजी केंद्रों पर सख्ती बढ़ाई जा रही है। नए निर्देशों के अनुसार, अब प्रदेश में किसी भी जांच केंद्र का संचालन बिना पैथोलॉजिस्ट के नहीं किया जा सकेगा। एक पैथोलॉजिस्ट अधिकतम दो केंद्रों में सेवाएं दे सकते हैं, जिसमें से एक उनका स्वयं का केंद्र हो सकता है, जबकि दूसरा किसी अन्य का। यदि पैथोलॉजिस्ट का खुद का केंद्र नहीं है, तो वे दो अन्य केंद्रों पर सेवाएं दे सकते हैं। उन्हें 15 दिनों के भीतर यह जानकारी अपने जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी को देनी होगी कि वे किन-किन केंद्रों में सेवाएं दे रहे हैं।
लैब टेक्नीशियन के भरोसे चल रहे पैथोलॉजी केंद्र
लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव, संदीप यादव ने इस संबंध में सभी जिलों के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारियों को निर्देश जारी किए हैं। वर्तमान में प्रदेश के कई पैथोलॉजी केंद्र लैब टेक्नीशियन के माध्यम से संचालित हो रहे हैं, जो जांच रिपोर्ट पर पैथोलॉजिस्ट का डिजिटल हस्ताक्षर लगाकर जारी कर देते हैं। इस प्रकार की व्यवस्था के कारण जांच की गुणवत्ता और विश्वसनीयता प्रभावित हो रही है, जिससे रोगियों को नुकसान होता है।
कोर्ट का पुराना आदेश और वर्तमान स्थिति
साल 2003 में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि बिना पैथोलॉजिस्ट के कोई भी जांच केंद्र संचालित नहीं होना चाहिए। तब यह व्यवस्था लागू की गई थी कि एक पैथोलॉजिस्ट केवल दो जांच केंद्रों में सेवाएं दे सकता है। हालांकि, समय के साथ इस नियम में शिथिलता आ गई, और कई पैथोलॉजी केंद्र लैब टेक्नीशियन के भरोसे चलने लगे। वर्तमान में प्रदेश में करीब 2500 पैथोलॉजी केंद्र संचालित हैं, जिनमें लगभग 600 डॉक्टर ही हैं जो पैथोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी और बायोकेमिस्ट्री में विशेषज्ञ हैं। अब प्रमुख सचिव ने सभी सैंपल कलेक्शन केंद्रों के लिए भी पैथोलॉजिस्ट को अनिवार्य कर दिया है।
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