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SIR के तनाव पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी राहत, BLO की मौतों पर लिया संज्ञान—राज्यों को सख्त निर्देश

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देशभर में चल रहा SIR (Voter List Special Revision) विवाद अब सुप्रीम कोर्ट के दरवाज़े तक पहुंच गया है। लगातार बढ़ते दबाव, ओवरलोड और कई जगहों से BLO की मौतों की खबरों ने मामले को गंभीर बना दिया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए राज्यों को स्पष्ट आदेश दिए हैं और BLOs के काम के बोझ को कम करने की दिशा में बड़ी बातें कही हैं।

सुप्रीम कोर्ट बोला—SIR वैध प्रक्रिया, इसे पूरा करना ज़रूरी

सुनवाई के दौरान CJI जस्टिस सूर्यकांत ने साफ कहा कि SIR एक वैध और ज़रूरी प्रक्रिया है। अगर स्टाफ की कमी है, तो ये राज्य सरकारों की ज़िम्मेदारी है कि वे इसे पूरा करें। कोर्ट ने कहा—राज्य सरकारें चुनाव आयोग (EC) को पर्याप्त स्टाफ उपलब्ध कराएं ताकि पूरा काम निर्धारित समय में हो सके।

BLOs की मुश्किलें सुनकर कोर्ट भी हुआ सख्त

कई राज्यों में BLOs पर बढ़ते दबाव और उनकी मौतों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर किसी BLO को निजी कारणों से SIR का काम संभालना मुश्किल हो, तो उसे राहत दी जाए और उसकी जगह किसी अन्य को नियुक्त किया जाए।कोर्ट ने यह भी कहा कि BLOs पर अनावश्यक दबाव या धमकी नहीं दी जानी चाहिए।

अतिरिक्त भर्ती और अतिरिक्त स्टाफ लगाने के निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से कहा कि BLOs का बोझ कम करने के लिए अतिरिक्त स्टाफ और अतिरिक्त भर्ती की जाए। अदालत ने यह भी कहा कि SIR में लगे कर्मचारी कानून के तहत यह काम करने के लिए बाध्य हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उन पर जरूरत से ज्यादा दबाव डाला जाए।
अगर BLOs को असुविधा हो रही है, तो राज्य सरकारों को उनकी दिक्कतें दूर करनी होंगी।

BLOs की मौत और FIRs पर अदालत ने जताई चिंता

सुनवाई में वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायण ने बताया कि 35 से 40 BLOs की आत्महत्या की खबरें सामने आई हैं। इनमें ज़्यादातर आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, शिक्षक आदि शामिल हैं।उन्होंने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश में BLOs पर 50 FIR दर्ज की गई हैं और RP Act के तहत उन्हें दो साल की जेल तक की धमकी दी जा रही है। कोर्ट ने इसे बेहद गंभीर बताया।

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‘इतनी जल्दी क्यों?’—सिब्बल का सवाल, कोर्ट का राज्यों से जवाब मांगा

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि BLOs पर इतना प्रेशर क्यों? SIR को पूरा करने के लिए पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए।
इस पर CJI ने राज्यों से पूछा—“अगर राज्यों को दिक्कत है, तो वे कोर्ट में आकर बताते क्यों नहीं? चुप क्यों बैठे हैं?”
कोर्ट ने साफ कहा कि राज्यों को आगे आकर स्थिति स्पष्ट करनी होगी।

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