Premanand Maharaj Disease:वृंदावन के पूज्य संत प्रेमानंद महाराज की तबीयत अचानक बिगड़ने के बाद उनकी पदयात्रा को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया है। जैसे ही यह खबर शनिवार को भक्तों तक पहुंची, आश्रम से लेकर सोशल मीडिया तक हलचल मच गई। भक्तों की आंखों में आंसू भर आए और कई लोगों ने अपना कामकाज छोड़ महाराज जी के स्वास्थ्य लाभ के लिए प्रार्थना और भजन कीर्तन शुरू कर दिए। वृंदावन की पवित्र कुंज गलियों में, जहां पहले “राधे-राधे” की गूंज होती थी, अब एक अजीब सी खामोशी छा गई है।
प्रेमानंद महाराज किस बीमारी से पीड़ित हैं?
भक्तों के मन में यह सवाल उठ रहा है कि आखिर प्रेमानंद महाराज कौन सी बीमारी से जूझ रहे हैं। जानकारी के अनुसार, महाराज जी की दोनों किडनियां करीब 18 साल पहले फेल हो चुकी थीं। वे ऑटोसोमल डॉमिनेंट पॉलीसिस्टिक किडनी डिज़ीज़ (ADPKD) नामक गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं। यह बीमारी धीरे-धीरे किडनी की कार्यक्षमता को कम कर देती है और अंततः किडनी फेल्योर का कारण बनती है।
क्या है ऑटोसोमल डॉमिनेंट पॉलीसिस्टिक किडनी डिज़ीज़?
यह बीमारी 2006 से महाराज जी को परेशान कर रही है। इसे आम भाषा में पॉलीसिस्टिक किडनी डिज़ीज़ कहा जाता है। पहले यह माना जाता था कि यह रोग हर 1000 में से एक व्यक्ति को होता है, लेकिन आजकल तेज़ जीवनशैली और असंतुलित खानपान के कारण यह आम हो गया है। पहले महाराज जी को हर पांच दिन में डायलिसिस करवाना पड़ता था, लेकिन अब उन्हें रोजाना डायलिसिस की जरूरत पड़ती है।
इस बीमारी के लक्षण
ऑटोसोमल डॉमिनेंट पॉलीसिस्टिक किडनी डिज़ीज़ में दोनों किडनियों में सिस्ट (गांठें) बनने लगती हैं, जिससे उनकी कार्यक्षमता धीरे-धीरे घटती जाती है। अगर समय पर इलाज न मिले तो यह क्रॉनिक किडनी डिज़ीज़ में बदल जाती है। इसके मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं –
- पेट, कमर या पीठ में दर्द
- पेशाब में खून आना
- पेट में भारीपन महसूस होना
- किडनी के आकार में वृद्धि
- सिर दर्द
- किडनी स्टोन बनना
- किडनी डैमेज और थकान
बीमारी के कारण
यह बीमारी अक्सर वंशानुगत (Genetic) होती है। अगर माता-पिता में से किसी एक को यह रोग है, तो बच्चे में इसके होने की संभावना 50% तक बढ़ जाती है। यह रोग जीन की गड़बड़ी के कारण होता है, जो किडनी में सिस्ट बनने का कारण बनती है।
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क्या है इस बीमारी का इलाज?
फिलहाल इस बीमारी का कोई स्थायी इलाज मौजूद नहीं है, लेकिन लक्षणों को नियंत्रित कर रोग की गति को धीमा किया जा सकता है। मरीजों को डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ सकती है। डॉक्टर दवाइयों, हेल्दी डाइट और लाइफस्टाइल चेंज की सलाह देते हैं। नियमित जांच और डॉक्टर की निगरानी से मरीज की स्थिति को बेहतर बनाए रखा जा सकता है।