8 बार से कांग्रेस को देखना पड़ रहा है हार का मुंह
Political News – बैतूल – लोकसभा चुनाव में जहां भाजपा पूरे दमखम के साथ चुनाव लडक़र जीत का परचम लहराती है वहीं कांग्रेस पार्टी ताकत से चुनाव लडऩे के बजाए लोकसभा कैंडिडेट भी दमदार नहीं उतारती है। यही वजह है कि पिछले 8 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को लगातार हार का मुंह देखना पड़ रहा है। वहीं 1952 से 2019 तक लोकसभा हुए 18 चुनाव में 10 बार भाजपा को सफलता मिली है। कांग्रेस 1952 से 1971 तक निरंतर चुनाव जीती है तब देश में विपक्ष बहुत कमजोर था। वहीं 1996 से 2019 तक लगातार भाजपा प्रत्याशी सांसद निर्वाचित हो रहा है।
खण्डेलवाल ने बदली उम्मीदवारी की फिजा
1952 से 1996 तक लगातार 11 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने बैतूल से बाहर के व्यक्ति को प्रत्याशी बनाया। वो तो गनीमत है कि उस समय में विपक्ष संगठित और मजबूत नहीं था इसलिए कांग्रेस इन 11 बार में से 8 बार चुनाव जीत गई। इसका परिणाम यह रहा कि कांग्रेस के दिल्ली के नेताओं को यह लगा कि जो नेता देश में कहीं एडजस्ट नहीं हो रहा है या जिसकी जमीन नहीं है उसे बैतूल में लोकसभा उम्मीदवार बना दिया जाता था। और इस तरह से कांग्रेस ने बैतूल को राजनैतिक चारागाह समझ लिया था। लेकिन जैसे ही 1996 में भाजपा ने दिग्गज स्थानीय नेता विजय कुमार खण्डेलवाल को उम्मीदवार बनाया और लगातार उन्होंने अपने जीवन में चार चुनाव तक सफलता प्राप्त की तब से कांग्रेस ने भी बाहरी प्रत्याशियों पर दांव लगाना बंद कर दिया। लेकिन जो स्थानीय प्रत्याशी भी मैदान में उतारे गए उनका अपने गांव के बाहर कोई वजूद नहीं रहा। परिणाम यह रहा कि कांग्रेस लगातार 8 चुनाव से हारती रही।
बैतूल सीट को बना दिया था राजनैतिक चारागाह
कांग्रेस ने बैतूल संसदीय सीट से हमेशा ऐसे उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे जो अन्य पदों पर नहीं रहे और ना ही कोई दूसरा चुनाव जीते। 1952 से 1962 तक बाहरी भीखूलाल चांडक, 1967 से 1977 तक नागपुर के एनकेपी साल्वे, 1980 में भोपाल के गुफराने आजम, 1984 से 1996 तक भोपाल के ही असलम शेर खान कांग्रेस की टिकट पर लड़ते रहे। जबकि इस दौर में बैतूल में कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता सक्रिय रहे और विधायक तथा कांग्रेस संगठन में राष्ट्रीय स्तर के पदों पर भी आसीन रहे लेकिन ऐसे किसी भी नेता को पार्टी ने लोकसभा का चुनाव लड़वाना उचित नहीं समझा। और इन बाहरी को चुनाव लड़वाया जो जीतकर कभी वापस नहीं आए और इसलिए कांग्रेस पूरे क्षेत्र में कमजोर होती गई। जिसका परिणाम यह है कि अब पूरे संसदीय क्षेत्र में नगरीय निकाय, पंचायत चुनाव, सहकारिता चुनाव, विधानसभा और लोकसभा में अधिकांशत: कांग्रेस का सूपड़ा साफ जैसी स्थिति हो गई है।
दिग्गज आदिवासी नेताओं की हुई अनदेखी
पूर्व में कांग्रेस में सक्रिय रहे कई दिग्गजों द्वारा चाहने के बावजूद पार्टी ने लोकसभा उम्मीदवार नहीं बनाया। वहीं 2009 से अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित होने के बाद मंत्री स्तर के आदिवासी नेताओं की उपेक्षा कर सरपंच स्तर के लोगों को लोकसभा उम्मीदवार बनाया गया। 2009 में ओझाराम इवने को चुनाव लड़वाया गया जो 97917 वोटों से भाजपा की ज्योति धुर्वे से हार गए। उस समय पूर्व मंत्री एवं कई बार घोड़ाडोंगरी सीट से चुनाव जीते प्रताप सिंह एक मजबूत दावेदार थे। इसी तरह से 2014 में अजय शाह को कांग्रेस पेराशूट उम्मीदवार बनाया जो अधिकांश समय नौकरी में रहे और बैतूल जिले से उनका कोई लेना-देना नहीं रहा। उस समय युवा नेता राहुल चौहान को टिकट देने के बाद उम्मीदवार बदल दिया गया जिसका खामियाजा पार्टी को उठाना पड़ा और अजय शाह 328614 वोटों के रिकार्ड अंतर से चुनाव हार गए। यही स्थिति 2019 में बनी जब अधिकांश समय भोपाल रहे रामू टेकाम को उम्मीदवार बनाया जबकि उस समय कांग्रेस के दो आदिवासी विधायक निर्वाचित हुए थे। इनमें भैंसदेही से धरमूसिंह दूसरी बार और घोड़ाडोंगरी से ब्रम्हा भलावी जीते थे। इन वरिष्ठों की उपेक्षा कर रामू टेकाम को टिकट दी गई जो भाजपा के डीडी उइके से 360241 वोटों से चुनाव हारे। 2024 के इस लोकसभा चुनाव में यही पुरानी जोड़ी लड़ रही है और इस बार तो रामू टेकाम को टिकट मिलने पर प्रतापसिंह, धरमूसिंह और ब्रम्हा भलावी जैसे वरिष्ठ आदिवासियों ने भी खुला असंतोष जाहिर किया था।
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