27 वर्षों से निरंतर बैतूल लोस सीट भाजपा के कब्जे में
Political News – बैतूल – विधानसभा चुनाव में जीत के बाद जहां भाजपा लोकसभा चुनाव में भी जीत को लेकर आशान्वित है। वहीं कांग्रेस विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद लोस चुनाव को लेकर अभी तक रणनीति बनाने में फिसड्डी साबित हो रही है। जबकि 27 वर्षों से बैतूल लोकसभा सीट पर निरंतर भाजपा का कब्जा चला आ रहा है वहीं 71 वर्षों के संसदीय इतिहास में बैतूल सीट पर कांग्रेस के किसी भी स्थानीय उम्मीदवार को सांसद बनने का मौका नहीं मिला है।
1952 से 2009 तक यह सीट अनारक्षित थी। लेकिन इसके बाद से अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हो गई है। पहले बैतूल लोकसभा सीट में छिंदवाड़ा जिले की दो विधानसभा सीट शामिल थी। इसके बाद हरदा जिले की दो सीट शामिल हुई और फिर इसमें खण्डवा जिले की हरसूद सीट भी शामिल हो गई।
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2009 से आरक्षित है बैतूल सीट | Political News
परिसीमन के बाद 2009 से बैतूल, हरदा, हरसूद संसदीय सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। इस लोकसभा सीट में बैतूल जिले की पांच, हरदा की दो और खंडवा जिले की हरसूद सीट शामिल है जिसमें बैतूल की भैंसदेही और घोड़ाडोंगरी तथा हरसूद सीट अनुसूचित जनजाति के लिए, आमला एवं हरदा जिले की टिमरनी सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है।
सिर्फ बैतूल, मुलताई और हरदा सीट ही अनारक्षित श्रेणी में है। 2009, 2014 एवं 2019 में आरक्षण के चलते अनुसूचित जनजाति के ही सांसद निर्वाचित हुए हैं। 2024 में भी यही स्थिति होनी है। लेकिन 2029 तक परीसिमन पुन: होगा और तब पुन: यह सीट अनारक्षित होने की संभावना है।
1996 से भाजपा के कब्जे में है बैतूल सीट
1996, 1998, 1999 एवं 2004 से 2008 के उपचुनाव तक बैतूल सीट अनारक्षित थी एवं इस सीट में हरसूद सीट नहीं जुड़ी थी। और इन पांचों ही चुनाव में पिता विजय कुमार खण्डेलवाल चार बार एवं उपचुनाव में पुत्र हेमंत खण्डेलवाल निर्वाचित हुए थे।
2009 और 2014 में इस सीट से अनुसूचित जनजाति की भाजपा उम्मीदवार ज्योति धुर्वे दो बार सांसद निर्वाचित हुई। वहीं 2019 में भाजपा के ही दुर्गादास उइके रिकार्ड मतों से सांसद बने। इस तरह से यह सीट पिछले 27 वर्षों से भाजपा के कब्जे में है। 1977 में विपक्षी दल जनता पार्टी के सुभाष आहूजा एवं 1989 में भाजपा के आरीफ बेग चुनाव जीते थे।
1952 से 1991 तक कांग्रेस का पलडा रहा भारी | Political News
1952, 1957 एवं 1962 में कांग्रेस के भीखूलाल चाडक़ (नागपुर) सांसद बने थे। तब बैतूल जिले के साथ छिंदवाड़ा जिले की दो विधानसभा शामिल थी। 1967 और 1971 में देश के विख्यात कर सलाहकार नागपुर निवासी एनकेपी साल्वे सांसद बने। 1980 में भोपाल के गुफराने आजम, 1984 और 1991 में भोपाल के ही अशलम शेर खान कांग्रेस की टिकट पर निर्वाचित होते रहे।
71 वर्षों में नहीं बना कांग्रेस का स्थानीय सांसद
1952 से 2023 तक 71 वर्षों में बैतूल लोकसभा सीट से कांग्रेस के किसी भी स्थानीय नेता को सांसद बनने का अवसर नहीं मिला है। क्योंकि 1952 से 1996 तक कांगे्रस ने बैतूल लोकसभा क्षेत्र में निवास करने वाले किसी भी स्थानीय कांग्रेस नेता को चुनाव लडऩे का अवसर ही नहीं दिया था। छिंदवाड़ा, नागपुर और भोपाल में रहने वाले कांग्रेस नेताओं ने बैतूल को चारागाह बना लिया था।
कांग्रेस हाईकमान से अपने संबंधों के बल पर टिकट लेकर पैराशूट उम्मीदवार के रूप में चुनाव के समय बैतूल पहुंचते थे और चुनाव जीत जाते थे। लेकिन 1996 में आखरी बार कांग्रेस उम्मीदवार भोपाल के असलम शेर खान की भाजपा के स्थानीय उम्मीदवार विजय कुमार खण्डेलवाल से हार के बाद मजबूरन कांग्रेस ने भी 1998 के चुनाव से स्थानीय नेताओं को टिकट देना शुरू किया।
इनमें अशोक साबले, राजेंद्र जायसवाल, उपचुनाव में सुखदेव पांसे, ओझाराम इवने, अजय शाह (हरदा) एवं रामू टेकाम को चुनाव लड़वाया लेकिन यह सभी चुनाव हार गए। इस तरह से बैतूल लोकसभा सीट के 71 वर्षों के इतिहास में बैतूल लोकसभा सीट के किसी भी रहवासी को कांग्रेस की टिकट पर सांसद बनने का अवसर नहीं मिला।
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