समय रहते भाजपा ने किया था विद्रोहियों का निष्कासन

Political News – बैतूल – राजनीति में जिसे चूका हुआ मान लिया गया था उसने अपनी सादगी, विश्वसनीयता, ईमानदारी और पार्टी के प्रति अटूट निष्ठा से फिर एक बार सबका चेहता बना दिया है। और इसी नेता ने जिले के सबसे बड़े कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री को राजनैतिक रूप से चारों खाने चित्त कर दिया।

हम बात कर रहे हैं तीसरी बार विधायक निर्वाचित हुए चंद्रशेखर देशमुख की। जिन्हें चुनाव में निपटाने के लिए क्षेत्र के कई दिग्गज भाजपाईयों ने एड़ी चोटी का जोर लगा लिया था। लेकिन जब भाग्य साथ दे तो हर चीज पक्ष में होने लगती है।
जिपं सदस्य के लिए नहीं दी थी सहमति | Political News
2013 में जीतने के बावजूद जब 2018 में पार्टी ने टिकट नहीं दी तो चंद्रशेखर की पार्टी में भी भारी उपेक्षा होने लगी और उन्होंने मुलताई क्षेत्र के जिपं सदस्य क्रं. 14 वार्ड से जिस उम्मीदवार के लिए भाजपा का समर्थन मांगा था उसको समर्थन ना देते हुए उर्मिला गव्हाड़े को समर्थन दिया और उर्मिला गव्हाड़े चुनाव जीत गई।
इसी उर्मिला गव्हाड़े द्वारा 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के घोषित उम्मीदवार चंद्रशेखर देशमुख का खुलकर विरोध करने और अपनी भाभी मीना गव्हाड़े को निर्दलीय चुनाव लड़ाने के चलते चुनाव के बीच 8 नवम्बर 2023 को पार्टी से निष्कासित कर दिया। चुनाव परिणाम भी यह बता रहे हैं कि मीना गव्हाड़े के लडऩे से चंद्रशेखर को कोई फर्क नहीं पड़ा। इस चुनाव में मीना गव्हाड़े को पूरे विधानसभा क्षेत्र से मात्र 752 वोट मिले। जबकि जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में उसकी भाभी को हजारों की संख्या में वोट मिले थे।
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पांसे ने उर्मिला को बताया था अच्छा उम्मीदवार

इसी बीच कांग्रेस प्रत्याशी सुखदेव पांसे ने 5 अक्टूबर 2023 में बिरूल क्षेत्र में आयोजित एक शिलान्यास समारोह में मंच पर बैठी जिला पंचायत सदस्य उर्मिला गव्हाड़े के सामने सार्वजनिक रूप से अपने भाषण में यह कहा था कि मुलताई से भाजपा की टिकट के लिए जितने दावेदार थे उनमें से यदि कोई सबसे अधिक निष्क्रिय है तो वह चंद्रशेखर देशमुख है। और अगर भाजपा को टिकट देना था तो हमारी बहन जो दिन रात एक्टिव है उर्मिला गव्हाड़े इसको भी विधानसभा का टिकट दे देते तो चंद्रशेखर से अच्छी साबित होती।
रिकार्ड मतों से जीतने के बावजूद नहीं दी थी टिकट | Political News
2013 में मुलताई विधानसभा सीट से चंद्रशेखर देशमुख ने कां्रगेस के सुखदेव पांसे को लगभग 32 हजार के रिकार्ड मतों से चुनाव हराया था। मुलताई विधानसभा के 70 साल के इतिहास में यह सबसे बड़ी जीत थी। जबकि 2008 के चुनाव में सुखदेव पांसे ने चंद्रशेखर देशमुख को मात्र 2900 वोट से हराया था। लेकिन 2018 आते-आते भाजपा ने चंद्रशेखर देशमुख की इस रिकार्ड जीत को अनदेखा करते हुए टिकट तक नहीं दी। नतीजा एक बार फिर सुखदेव पांसे भाजपा के राजा पंवार को चुनाव हराकर विधायक बन गए।
2023 आते-आते भाजपा को यह समझ आ गया कि चंद्रशेखर देशमुख ही सुखदेव पांसे को टक्कर दे सकते हैं। और पार्टी का यह निर्णय शत प्रतिशत सही साबित हुआऔर इस चुनाव में चंद्रशेखर देशमुख ने 14 हजार 842 मतों के बड़े अंतर से फिर सुखदेव पांसे को हरा दिया। सबको चौंकाते हुए पार्टी ने तीन माह पूर्व ही अगस्त माह में चंद्रशेखर देशमुख को उम्मीदवार घोषित कर दिया था।
भीतरघाती नहीं रोक पाए चंद्रशेखर की जीत

मुलताई सीट से भाजपा के कई दावेदार थे जिनमें हेमंत विजय राव देशमुख, राजू पंवार, सुभाष देशमुख और भास्कर मगरदे शामिल है। लेकिन चुनाव प्रचार शुरू होने के पूर्व ही भाजपा ने इन सभी दावेदारों को चंद्रशेखर देशमुख का समर्थन करने के लिए राजी कर लिया और इन सभी ने चंद्रशेखर की जीत के लिए अथक परिश्रम किया। वहीं कुछ अन्य बड़े नेता जिस दिन से चंद्रशेखर को टिकट मिली थी उसी दिन से खुलकर निपटाने की घोषणा करने लगे थे।
बताया जाता है कि एक वरिष्ठ भाजपा नेता अपने पास पांच मोबाइल रखते थे और मतदाताओं और अपने समर्थकों को अलग-अलग नंबर से फोन करके कांग्रेस उम्मीदवार को जिताने के लिए माहौल बना रहे थे। और इसी दौरान दुनावा क्षेत्र के युवा भाजपा नेता पलाश कड़वे को भी निर्दलीय मैदान में उतरवाया गया। लेकिन चुनाव प्रचार के अंतिम दिन पलाश कड़वे भी भाजपा को समर्थन देते दिखाई दिए। इसके बावजूद भी 945 मतदाताओं ने उन्हें वोट दे दिया।
बताया जा रहा है कि पलाश कड़वे को भी भाजपा के इसी बड़े नेता निर्दलीय चुनाव लडऩे के लिए प्रेरित किया था ताकि दुनावा क्षेत्र के पंवार वोट पर सेंधमारी की जा सके। मतगणना के अंतिम दौर में पट्टन क्षेत्र और वरूड़ क्षेत्र से लगे आदिवासी बेल्ट से कांग्रेस की बढ़त की संभावना देखते हुए कांग्रेस प्रत्याशी को जीत मिल सके।
इस क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी को मतगणना के अंतिम पांच राऊंड में बढ़त अवश्य मिली लेकिन चंद्रशेखर देशमुख की दुनावा क्षेत्र, सांईखेड़ा क्षेत्र और मुलताई नगर से मिली बड़ी लीड के कारण आदिवासी बेल्ट की लीड कांग्रेस के कोई काम नहीं आई और तीसरी बार चंद्रशेखर देशमुख विधानसभा पहुंच गए।
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