ट्रंप के दबाव में नहीं झुके पीएम मोदी, बदल रहा है अमेरिका का रुख,अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए 50% टैरिफ के बाद दोनों देशों के रिश्ते पिछले एक दशक के सबसे खराब दौर में पहुँच गए थे। बावजूद इसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के किसी भी दबाव के आगे झुकने से साफ इनकार कर दिया। मोदी ने तुरंत ही नई कूटनीति अपनाते हुए भारत-चीन-रूस की नज़दीकियों को मज़बूत किया, जिसने अमेरिका में हलचल मचा दी।
SCO शिखर सम्मेलन और ट्रंप की चिंता
चीन के तिआनजिन में हुए SCO समिट में पीएम मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की गर्मजोशी भरी मुलाकात ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा। इसी के बाद ट्रंप ने अपने Truth Social अकाउंट पर लिखा – “ऐसा लगता है कि हमने भारत और रूस को चीन के हाथों खो दिया है।” ट्रंप का यह बयान उनकी नीति में बदलाव का संकेत माना जा रहा है।
मोदी की कूटनीति ने दिलाई बढ़त
विशेषज्ञों का मानना है कि पीएम मोदी ने अमेरिका के साथ तनावपूर्ण रिश्तों को बड़ी समझदारी से संभाला। अगर मोदी भी ट्रंप की तरह तीखे बयान देते, तो हालात और बिगड़ सकते थे। इसके बजाय उन्होंने चुपचाप बैक चैनल डिप्लोमेसी पर भरोसा किया और भारत-अमेरिका रिश्तों को पटरी से उतरने से बचाया।
ट्रंप का बदला हुआ सुर – मोदी को बताया दोस्त
वॉशिंगटन में ट्रंप ने बयान दिया – “मैं हमेशा पीएम मोदी का दोस्त रहूँगा, वे एक महान प्रधानमंत्री हैं। भारत और अमेरिका के बीच विशेष रिश्ता है।” यह साफ दिखाता है कि ट्रंप अब भारत के महत्व को समझने लगे हैं। उनकी यह सकारात्मक सोच दोनों देशों के रिश्तों में सुधार का रास्ता खोल सकती है।
पीएम मोदी की सकारात्मक प्रतिक्रिया
ट्रंप के बयान पर पीएम मोदी ने भी प्रतिक्रिया दी और अपने X अकाउंट पर लिखा – “हम राष्ट्रपति ट्रंप की भावनाओं और भारत-अमेरिका संबंधों पर उनके सकारात्मक विचारों की सराहना करते हैं।” मोदी ने जोर देकर कहा कि दोनों देशों के बीच संबंध वैश्विक और रणनीतिक साझेदारी के स्तर पर बेहद अहम हैं।
यह भी पढ़िए:Toyota 2025 SUV: दमदार लुक और प्रीमियम फीचर्स के साथ होगी लॉन्च
विशेषज्ञों की राय – समझदारी से सुलझेगा विवाद
JNU के प्रोफेसर अभिषेक श्रीवास्तव के अनुसार भारत और अमेरिका स्वभाव से प्रतिद्वंद्वी नहीं हैं क्योंकि हमारे बीच कोई क्षेत्रीय विवाद नहीं है। ट्रंप का 50% टैरिफ लगाना न तो व्यावहारिक था और न ही न्यायसंगत। भारत ने बड़े धैर्य से इस मुद्दे को संभाला है। विशेषज्ञों का मानना है कि अभी ज़रूरत है कूटनीतिक संवाद और द्विपक्षीय वार्ताओं को आगे बढ़ाने की, ताकि रिश्ते और मजबूत हों।