वन में 175 प्रजातियों के 5700 पौधे लगाए
New life: भदभदा विश्रामघाट में एक अनोखी और संवेदनशील पहल के तहत राख को नई जिंदगी में बदल दिया गया है। कोरोना काल के भयावह समय में जब अस्पतालों और श्मशानों में रोजाना कई शवों का अंतिम संस्कार हो रहा था, तब बहुत से परिजन अपने प्रियजनों की राख और अस्थियां लेकर नहीं आए। भदभदा विश्रामघाट में ऐसे करीब 21 डंपर राख और अस्थियां जमा हो गई थीं।विश्रामघाट समिति ने अस्थियों का पवित्र नदियों में विसर्जन कर अपना कर्तव्य निभाया, लेकिन राख का क्या किया जाए, यह एक बड़ा सवाल था। तभी समिति के सदस्यों को विचार आया कि इस राख का उपयोग कर विश्रामघाट में एक स्मृति वन तैयार किया जाए। इस विचार को साकार करते हुए 12 हजार वर्ग फीट की जमीन पर “राम स्मृति वन” की स्थापना की गई।
राख, मिट्टी, गोबर और लकड़ी के बुरादे को मिलाकर विशेष खाद तैयार की गई, जिससे इस वन में 175 प्रजातियों के 5700 पौधे लगाए गए। इन पौधों को मियावाकी पद्धति से लगाया गया, जो तेजी से बढ़ने के लिए जानी जाती है। आज, इनमें से कई पौधे पेड़ बन चुके हैं, जिनकी ऊंचाई 25 फीट तक पहुंच गई है। यह वन न केवल पूर्वजों की स्मृतियों को जीवित रखता है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी एक महत्वपूर्ण योगदान बन गया है।समिति के अध्यक्ष अरुण चौधरी बताते हैं कि यह वन उन अपनों की यादों को सहेजने के लिए विकसित किया गया था, जो कोरोना काल में बिछड़ गए थे। इस बार पितृपक्ष में भी लोग यहां आकर अपनों की स्मृति में पौधे लगा रहे हैं, और इसके लिए विशेष स्थान उपलब्ध कराया जा रहा है। यह वन एक ऐसी जगह बन चुका है, जहां प्रकृति और मानवता का एक अनोखा संगम देखने को मिलता है, और यह मानो पूर्वजों का आशीर्वाद ही है कि यहां लगाया गया कोई भी पौधा सूखा नहीं है।
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