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Navratri: तीन रूप में दर्शन देती है माता गढ़खंखाई

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मान्यता है कि पावागढ़ से उडक़र आई थी भद्रकाली की मूर्ति

Navratri: रतलाम(ई-न्यूज)।  ऐसी मान्यता है कि विंध्य के पठार पर स्थित गढ़ खंखाई माता दिन में तीन रूप में दर्शन देती हैं। माता के बारे में कहा जाता है कि पावागढ़ से उडक़र यहां पर भद्रकाली की मूर्ति आई थी। लोगों की आस्था का केंद्र माता के दरबार में भक्तों का जनसैलाब उमड़ता है।  मध्यप्रदेश के रतलाम जिले में स्थित गढख़ंखाई माता मंदिर को लेकर मान्यता है कि जो यहां एक बार आता है, मां उसे बार-बार बुलाती हैं। भक्त कहते हैं कि मां गढख़ंखाई की सवारी शेर उनकी पूजा करने मंदिर में आज भी आता है।


राजापुरा माताजी भी है नाम


रतलाम से 40 किमी दूर बाजना रोड पर बसे राजापुरा गांव को राजापुरा माताजी के नाम से भी जाना जाता है। गांव से गुजरी माही नदी के किनारे मां गढख़ंखाई का भव्य मंदिर है। मंदिर में प्रवेश करते ही सबसे पहले शीतला माता और शेर के दर्शन होते हैं। इसके बाद भक्त काला-गोरा भैरव का आशीर्वाद लेते हैं। मंदिर परिसर में ही हनुमान जी के भी दर्शन होते हैं। आदिवासी अंचल में स्थित इस मंदिर में सभी समाजों की गहरी आस्था है। मान्यता है कि मां गढख़ंखाई दिन में तीन रूप में दर्शन देती हैं। सुबह बाल रूप, दोपहर में युवा अवस्था और रात में माता रानी का वृद्ध स्वरूप दिखता है। चैत्र नवरात्रि में यहां मेला लगता है जबकि शारदीय नवरात्रि में गरबा का आयोजन होता है। मंदिर में अष्टमी पर यज्ञ कराने की खास महत्ता है। नवरात्रि में मां के दर्शन के लिए रतलाम के अलावा दूर-दूर से भक्त यहां पहुंचते हैं।


 यह है माता के नाम की कथा


मंदिर की सतचंडी यज्ञ समिति अध्यक्ष भेरुलाल टांक बताते हैं कि गढख़ंखाई माताजी के नाम को लेकर भी एक कथा है। कहा जाता है कि यहां राजा रतन सिंह द्वारा रतलाम गढ़ का निर्माण कराया जा रहा था। उस समय गरबे के दौरान राजा ने माता का पल्ला पकड़ा था। माताजी ने कहा था- जो चाहिए, मांग लो। तब राजा ने कहा- आप चाहिए। तब माताजी ने क्रोध में आकर खंखारा और श्राप दिया। इससे निर्माणाधीन गढ़ बिखर गया। तब से यह स्थान गढख़ंखाई के नाम से जाना जाने लगा। टांक के अनुसार, यहां विराजित मां भद्रकाली की प्रतिमा शक्तिपीठ में से एक है।


माता की ज्योति लेकर जाते हैं भक्त


मंदिर के पुजारी राजेश शर्मा बताते हैं कि नवरात्रि के पहले दिन बड़ी संख्या में भक्त यहां से ज्योति लेकर जाते हैं। यह मंदिर 1 हजार साल से भी अधिक पुराना है। मान्यता है कि मंदिर में विराजीं मां भद्रकाली की मूर्ति गुजरात के पावागढ़ से उडक़र यहां आई थी। वहां से पंडित भी साथ आए थे। मंदिर में स्थित मां गढख़ंखाई के रूप में विराजित मां भद्रकाली हैं। जो यहां सच्चे मन से मांगता है, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है।


नि:संतान को प्राप्त होती है संतान


आस्था का केंद्र होने के साथ-साथ माही नदी किनारे बसा यह प्राचीन मंदिर पर्यटन स्थल के रूप में भी जाना जाता है। रतलाम से यहां आने रास्ते में पर्यावरण पार्क, जामण पाटली नदी के साथ पहाडिय़ों का नजारा बारिश के मौसम में बहुत सुंदर लगता है। भक्तों के अनुसार, गढख़ंखारी संतान सुख देने वाली माता के रूप में भी पहचानी जाती हैं। मंदिर के गर्भगृह में कांच की नक्काशी है। प्राचीन काल में यहां मन्नत पूरी होने पर भक्त बलि च?ाते थे, लेकिन अब मंदिर में इस प्रथा को बंद कर दिया गया है। अब माही नदी के किनारे मन्नत उतारी जाती है। यहां आने वाले भक्तों का कहना है कि नवरात्रि के दौरान रात में मां अंबे की सवारी शेर मंदिर में आता है। मंदिर यज्ञ समिति के भेरुलाल टांक बताते हैं कि पहले यहां शेर प्रतिदिन आता था। अब रहवासी क्षेत्र बढ़ जाने के कारण शेर का आना कम हो गया। अगर रात्रि में आता भी है तो यहां कोई मौजूद नहीं रहता है। साभार…

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