Music band: मध्यप्रदेश के सरकारी हायर सेकंडरी स्कूलों में म्यूजिक बैंड बनाए जाने की तैयारी

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Music band: मध्यप्रदेश में पहली बार बड़े पैमाने पर सरकारी हायर सेकंडरी स्कूलों में म्यूजिक बैंड बनाए जाने की तैयारी है। यह कदम 552 सरकारी स्कूलों में म्यूजिकल बैंड की स्थापना के साथ छात्रों को संगीत के क्षेत्र में अवसर देने के उद्देश्य से उठाया गया है।

मुख्य जानकारी:

चरणबद्ध योजना:पहले चरण में 415 स्कूलों में म्यूजिकल बैंड बनाए जाएंगे।दूसरे चरण में 137 स्कूल इस योजना में शामिल किए जाएंगे।ये स्कूल पीएम श्री स्कूल योजना के तहत चयनित हैं।संगीत उपकरण और प्रशिक्षक:प्रत्येक स्कूल में 2 लाख रुपये की राशि म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट खरीदने के लिए दी जाएगी।हार्मोनी सूटकेस, बेस गिटार, कांगो, सिंथेसाइजर, ढोलक, फ्लूट जैसे कुल 9 प्रकार के म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट खरीदे जाएंगे।प्रत्येक स्कूल में एक म्यूजिक टीचर की नियुक्ति की जाएगी।प्रतियोगिता और अवसर:बच्चों को म्यूजिक में एक साल तक तैयारी कराने के बाद एक राज्य स्तरीय संगीत प्रतियोगिता आयोजित की जाएगी, ताकि बच्चों को संगीत क्षेत्र में आगे बढ़ने के अवसर मिलें।

पृष्ठभूमि:

मध्यप्रदेश के अधिकांश स्कूलों में संगीत शिक्षा की कमी को महसूस किया जा रहा था। प्रदेश के लगभग 8500 हाई और हायर सेकंडरी स्कूलों में म्यूजिक कोर्स तो है, लेकिन 50 स्कूलों में ही रेगुलर म्यूजिक टीचर मौजूद हैं। इसलिए, यह कोर्स सिर्फ सांस्कृतिक कार्यक्रमों तक सीमित रह गया था।

योजना की सीमाएं:

अभी भी यह योजना केवल 6% स्कूलों में लागू हो रही है, जो कि कुल स्कूलों की संख्या के मुकाबले कम है। 1994 में पहली बार सरकारी स्कूलों में म्यूजिक टीचर की भर्ती शुरू हुई थी, लेकिन 2018 में म्यूजिक टीचर के पद को भर्ती प्रक्रिया से हटा दिया गया था।

स्मार्ट क्लास के मुद्दे:

वहीं, स्मार्ट क्लास के लिए घटिया गुणवत्ता वाले चायनीज इंटरएक्टिव पैनल की खरीद के आरोप सामने आए हैं। उपनेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे ने आरोप लगाया है कि टेंडर प्रक्रिया में ऐसी शर्तें रखी गई हैं, जिससे बड़े ब्रांड जैसे सैमसंग प्रतियोगिता से बाहर हो गए हैं। उन्होंने सीएम मोहन यादव और स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार से टेंडर को निरस्त करने और ईओडब्ल्यू से जांच कराने की मांग की है।यह पहल म्यूजिक शिक्षा के क्षेत्र में एक सकारात्मक कदम है, लेकिन टेंडर और गुणवत्ता से संबंधित मुद्दों के कारण सरकारी स्कूलों में अन्य योजनाओं की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

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