कांग्रेस-भाजपा प्रत्याशियों को भी मिली थी करारी हार
MP Election – बैतूल – जिले के राजनैतिक इतिहास में कई ऐसे अवसर आए हैं जब हमेशा जीतने वाले राजनैतिक दल को चुनावी समर में तीसरे स्थान पर भी संतोष करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। कई चुनाव में निर्दलियों ने बाजी मारी तो कई चुनाव में निर्दलीय दूसरे स्थान पर रहे और इसी के चलते राजनैतिक दल के एक प्रत्याशी को तीसरे स्थान पर आना पड़ा। और यह जिले में एक बार नहीं 9 बार हुआ है।
1972 में जनसंघ उम्मीदवार रहा तीसरे स्थान पर
मुलताई-आमला विधानसभा सीट पर 1972 के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी राधाकृष्ण गर्ग अधिवक्ता निर्वाचित हुए और उनके निकटतम प्रतिद्वंदी के रूप में कांग्रेस के तत्कालिन दिग्गज नेता एवं अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे बालकृष्ण पटेल द्वितीय स्थान पर रहे। इस चुनाव में जनसंघ के प्रत्याशी पृथ्वीनाथ भार्गव को तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा।
1977 में जनता पार्टी को मिला तीसरा स्थान | MP Election
1977 के विधानसभा चुनाव में बैतूल विधानसभा सीट के प्रतिष्ठापूर्ण चुनाव में खेड़ी निवासी एवं जनसंघ के विद्रोही उम्मीदवार के रूप में माधवगोपाल नासेरी निर्दलीय चुनाव लड़े और उन्होंने जीत हासिल की। उनके निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस के डॉ. मारोतीराव पांसे रहे। वहीं जनता पार्टी (अब भाजपा) के रामचरित मिश्रा इस लड़ाई में तीसरे नंबर पर पहुंच गए।
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1980 में कांग्रेस को धकेला तीसरे नंबर पर
1980 के चुनाव में मुलताई विधानसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी मनीराम बारंगे ने चुनाव जीता और भाजपा के शिवचरण अग्रवाल को दूसरे स्थान पर जाना पड़ा। वहीं मुलताई से कांग्रेस की टिकट पर पड़े छिंदवाड़ा जिले के सुंदरलाल जायसवाल को करारी हार का सामना करना पड़ा और वह तीसरे नंबर पर रहे। जिले के राजनैतिक इतिहास में आज तक बैतूल के अलावा किसी अन्य जिले के किसी भी नेता को कांग्रेस या भाजपा ने विधानसभा चुनाव में नहीं उतारा। पहली बार छिंदवाड़ा में परासिया नगर पालिका अध्यक्ष रहे कमलनाथ के कट्टर समर्थक सुंदरलाल जायसवाल को मुलताई से क ांग्रेस की टिकट पर चुनाव लडऩे का मौका मिला था।
1993 में कांग्रेस गई तीसरे नंबर पर
1993 में इसी विधानसभा मुलताई सीट से कांग्रेस के विद्रोही डॉ. पंजाबराव बोडख़े निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े। और चुनाव जीते भी। उन्होंने भाजपा के मनीराम बारंगे को पराजित किया। लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस के 1985 में चुनाव जीते पूर्व विधायक अशोक कड़वे को तीसरे स्थान पर रहना पड़ा।
1998 में फिर भाजपा तीसरे नंबर पर | MP Election
1998 में मुलताई विधानसभा सीट से ही ग्वालियर के रहने वाले डॉक्टर सुनील मिश्रा (सुनीलम) ने इस सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और बड़े अंतर से उन्होंने कांग्रेस के पंजाबराव बोडख़े को पराजित किया। कांग्रेस छोडक़र भाजपा में पहुंचे अशोक कड़वे भाजपा उम्मीदवार थे। और उन्हें इस चुनाव में तीसरे स्थान पर रहना पड़ा।
2003 में कांगे्रस रही तीसरे नंबर पर
2003 में फिर एक बार मुलताई विधानसभा सीट से डॉ. सुनीलम निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े और फिर एक बार विधायक निर्वाचित हुए। उनके निकटतम प्रतिद्वंदी के रूप में भाजपा के डॉ. जीए बारस्कर दूसरे स्थान पर रहे। इसी चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़े राजा पंवार तीसरे नंबर पर रहे।
2003 में ही भाजपा तीसरे स्थान पर रही | MP Election
2003 के विधानसभा चुनाव में आमला में कांग्रेस, सपा और भाजपा के उम्मीदवारों में हार जीत का मात्र 700 वोटों के अंतर रहा। इस चुनाव में कांग्रेस की सुनीता बेले निर्वाचित हुई। उन्हें 20675 वोट मिले। उनके सामने सपा के संजय सातनकर 20277 वोट लेकर दूसरे स्थान पर रहे। लेकिन भाजपा के लालमन पारधे 20178 वोट लेकर तीसरे स्थान पर पहुंच गए।
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