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12 फरवरी को महाकुंभ में ऐसा होगा, क्‍या आपको पता है

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महाकुंभ मेला हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन है जो प्रत्येक 12 वर्षों में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित किया जाता है. यह मेला गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों के पवित्र संगम पर लाखों-करोड़ों श्रद्धालुओं को एक साथ लाता है. महाकुंभ का यह अद्भुत नज़ारा देखते ही बनता है – संगम के किनारे अस्थाई शहर सा बस जाता है जहां सन्यासी, साधु-संत और तीर्थयात्री एक साथ जमा होते हैं. वे गंगा में आस्था और श्रद्धा के साथ डुबकी लगाते हैं, प्रार्थना और ध्यान करते हैं. मेले में विभिन्न अखाड़ों के संतों के दर्शन होते हैं और धार्मिक प्रवचन सुनने को मिलते हैं. यह आध्यात्मिक माहौल अद्वितीय और अविस्मरणीय होता है. इस वर्ष के महाकुंभ में उत्तर प्रदेश सरकार ने भी भव्य इंतजाम किए हैं. संगम तक पहुंचने के लिए सड़कें, पुल बनाए गए हैं. स्वच्छता और सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध हैं. श्रद्धालुओं के लिए आवास, भोजन, चिकित्सा इत्यादि की समुचित व्यवस्था की गई है. रेलवे और बस सेवाएं भी बढ़ा दी गई हैं. महाकुंभ में शामिल होने का अनुभव अतुलनीय और दिव्य होता है. यह भारतीय संस्कृति और आस्था का जीता-जागता उदाहरण है जो विश्वभर के लोगों को आकर्षित करता है.

माघी पूर्णिमा को माघ मास का अंतिम दिन माना जाता है. इस दिन पवित्र जल में स्नान तथा वस्त्र और गोदान दैहिक तथा दैविक सभी कष्टों का निवारण करता है. माना जाता है कि माघ पूर्णिमा के दिन देवतागण पृथ्वी लोक में भ्रमण के लिए आते हैं. माघी पूर्णिमा कल्पवास की पूर्णता का पर्व है. एक मास की तपस्या एवं साधना इस तिथि को पूर्णता को प्राप्त होती है. फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी महाशिवरात्रि के रूप में मनाई जाती है क्योंकि पुराणों के अनुसार इसी दिन भगवान शिव का पार्वती जी से विवाह संपन्न हुआ था. यह कुम्भ का अन्तिम स्नान पर्व है. इस दिन पवित्र जल में स्नान करने के पश्चात् बिल्वपत्र, धतूरा, आक के फूल, चंदन, अक्षत, ईख की गँडेरियों सुगंधित द्रव्य, मधु, नवनीत, दूध तथा गंगाजल द्वारा शिवलिंग की पूजा एवं अभिषेक करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है. वहीं इस आयोजन का औपचारिक समापन 26 फरवरी को महाशविरात्री के दिन होगा. महाशविरात्री के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालू संगम और गंगा घाट पर स्नान करने के लिए जुटते हैं.

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