Search ई-पेपर ई-पेपर WhatsApp

चारे अनाज का देसी जुगाड़ : गांव के किसान पहले ऐसे जुगा से सालो तक रखते थे अनाज चारा कभी नई होता था देसी जुगाड़ से सुरक्षित रहता है चारा

By
On:

चारे का देसी जुगाड़ : गांव के किसान पहले ऐसे जुगा से सालो तक रखते थे अनाज चारा कभी नई होता था देसी जुगाड़ से सुरक्षित रहता है चारा सीमावर्ती धनाऊ के लुम्भाणीयो की बस्ती के बुजुर्ग रतनाराम सेजू ने बताया कि यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है. गांव में लोग इसी तरीके से अपने अनाज और चारे को बचाते है

नए जमाने मे पुरानी जुगाड़ काफी कारगर साबित हो रही है. अनाज चाराकिसान अपनी भंडारण पद्द्ति से चारा और अनाज को अनूठे तरीके से सहेजते है. रेगिस्तान के कई इलाकों में आज भी पूर्वजों से सीखी इस विद्या का उपयोग कर चारा सुरक्षित रख लेते है. जिसेस करीब 10 साल तक चारा खराब नहीं होता है.

गांव के किसान पहले ऐसे जुगा से सालो तक रखते थे अनाज चारा कभी नई होता था देसी जुगाड़ से सुरक्षित रहता है चारा

मारवाड़ में अक्सर अकाल का साया रहता है ऐसे में यहां चारा और अनाज को सहेजने की सदियों से परंपरा रही है. नए जमाने मे पुरानी जुगाड़ काफी कारगर साबित हो रही है. किसान अपनी भंडारण पद्द्ति से चारा और अनाज को अनूठे तरीके से सहेजते है. रेगिस्तान के कई इलाकों में आज भी पूर्वजों से सीखी इस विद्या का उपयोग कर चारा सुरक्षित रख लेते है. जिसेस करीब 10 साल तक चारा खराब नहीं होता है.

हालांकि, पिछले दो दशकों में स्थितियां बदल गई है फिर भी बेमौसम बारिश और भंडारण के अभाव में किसानोंअनाज चारा को चारा और फसल कम भाव में ही बेचना पड़ता है, मगर जो किसान चारा सहेजने और सुरक्षित रखने का देशी तरीका जानते हैं वह बड़े नुकसान से बच जाते हैं.

क्या थी बरसों पुरानी प्रक्रिया

दरअसल, सबसे पहले जमीन को समतल किया जाता है, फिर फसल के पुळे इस कदर चुनते हैं कि बारिश से खराब नहीं हो और वर्षों-बरस तक चारा सुरक्षित रह सके. इसके बाद यह एक झोपड़ी का आकार लेता है जिस तरह झोपड़ी को घास-फूस से ढककर सजाया जाता है, ठीक उसी तरह इसे भी ढका जाता है ताकि बारिश में पानी नीचे गिर जाएं. इसे बनाने में करीब एक सप्ताह का समय लग जाता है. इसके बाद इस पर वजन रखकर जमाया जाता है ताकि पानी की एक बूंद अंदर जाने की भी जगह नहीं बचे. यह पछावा या कराई पूरा होने के बाद इतना मजबूत हो जाता है कि इसके मध्य से एक तिनका निकालना भी संभव नहीं होता है, इसमें करीब 10 साल भी चारा खराब नहीं होता है.

कुछ किसान ही कर रहें इस विधि का प्रयोाग

आज के जमाने में ऐसे किसानों की संख्या बहुत कम रह गई है जो अनाज चारा सुरक्षित रख रहे हैं. कई गांव में आज भी पूर्वजों से सीखी इस विधि का उपयोग कर सूखा चारे को सुरक्षित रखा जा रहा है. सीमावर्ती धनाऊ के लुम्भाणीयों की बस्ती के बुजुर्ग रतनाराम सेजू बताते है कि यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है. अनाज चारागांव में लोग इसी तरीके से अपने अनाज और चारे को बचाते है.

यह भी पढ़े : Baaz Ka Video – शार्क को झपट कर समंदर पर मंडराने लगा बाज 

For Feedback - feedback@example.com

Leave a Comment

Home Icon Home E-Paper Icon E-Paper Facebook Icon Facebook Google News Icon Google News