जाने क्या है इसके पीछे का वैज्ञानिक सच
लोहे का उपयोग हमारे जीवन में सभी क्षेत्रों में होता है, चाहे वह घर की निर्माण हो या वाहन का निर्माण। हालांकि, यदि कोई आपसे पूछे कि धरती पर लोहा कहां से आता है, तो शायद आपके पास इसका स्पष्ट जवाब न हो। कुछ लोग यह कह सकते हैं कि इसे धरती के भीतर पाया जाता है, लेकिन क्या यह कभी खत्म होगा? इस सवाल का वैज्ञानिकों ने एक रोचक तरीके से उत्तर दिया है।
कहां तक है लोहा | Iron on Earth
शोध से पता चलता है कि लगभग साढ़े चार अरब साल पहले, जब धरती की उत्पत्ति हुई थी, तो इसकी सतह पूरी तरह ज्वालामुखी और पिघली हुई चट्टानों से भरी थी। ज्वालामुखी के लावों की कारण, लाखों वर्षों तक धरती की बाहरी परत पर लोहा गिरता रहा और धीरे-धीरे यह घुलकर धरती के केंद्र में पहुंच गया। यह लोहा उल्कापिण्डों की वृष्टि के साथ आया था। वर्तमान में, धरती के 2890 किलोमीटर नीचे तक सिर्फ़ लोहा और मैग्नीशियम का भंडार है।
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कैसे बनता है लोहा
लोहा सबसे भारी तत्वों में से एक है, जिसे परमाणु संलयन द्वारा बनाया जा सकता है, जो एक प्रक्रिया है जो तारों को ऊर्जा प्रदान करती है। संलयन उस समय होता है जब हल्के परमाणु आपस में टूटते हैं और भारी परमाणु बनाते हैं, जिससे ऊर्जा मुक्त होती है। तारे के केंद्र में, हाइड्रोजन हीलियम में बदल जाता है, फिर हीलियम कार्बन में बदल जाता है, और इसी तरह, जब तक लोहा बन जाता है, संलयन होता रहता है। लोहा विशेष है क्योंकि यह सबसे स्थिर तत्व है, इसे जोड़ने में अधिक ऊर्जा लगती है तुलना में इसे छोड़ने की। इस प्रक्रिया के दौरान तारे का ईंधन खत्म हो जाता है और इसमें विस्फोट होता है, जिसे सुपरनोवा कहा जाता है। इस विस्फोट से लोहा जैसे तत्व अंतरिक्ष में बिखरते हैं और धरती पर भी इसी रास्ते से आते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, सारा लोहा सुपरनोवा से नहीं आया है, बल्कि कुछ उल्कापिंडों और चट्टानों के टुकड़ों से आया है, जो अंतरिक्ष से गिरे हैं।
क्या कहते हैं वैज्ञानिक | Iron on Earth
पृथ्वी का लगभग सारा लोहा लगभग दो अरब वर्ष पहले बनी इन चट्टानों के भंडार से आया। वैज्ञानिकों ने रिसर्च में यह भी पता लगाया है कि वायुमंडल और महासागर में कभी ऑक्सीजन नहीं थी। उस समय प्रकाश संश्लेषण में सक्षम जीवों ने महासागरों से ऑक्सीजन बनाना शुरू किया और यह धरती पर घुले हुए लोगों से मिलकर हेमेटाइट और मैग्नेटाइट का उत्पादन करने लगा। हेमेटाइट चट्टानों और मिट्टी में व्यापक रूप से पाया जाने वाला एक सामान्य आयरन ऑक्साइड यौगिक है। इसे “बैंडेड आयरन फॉर्मेशन” के रूप में जाना जाता है। तो क्या लोहा कभी खत्म नहीं होगा? वैज्ञानिकों के मुताबिक, जब तक धरती पर ऑक्सीजन है और ऐसी चट्टानें मौजूद हैं, तब तक लोहे का उत्पादन होगा। लाखों साल तक इसके खत्म होने की कोई संभावना नहीं है।
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