Indian Railway – भारतीय रेलवे आज के समय में पुरे भारत में सबसे बड़ा ट्रांसपोर्टेशन हैं , लेकिन भारतीय रेलवे का इतिहास भी काफी पुराना है और इससे कुछ ऐसे तथ्य भी जुड़े हुए है जिसके जवाब जानने की उत्सुकता सभी होती है। समय के साथ साथ आज भारतीय रेलवे में कई सुविधाएं बढ़ाई गईं हैं।
अगर हम बात करें भारतीय रेलवे की सबसे पुराणी तकनीक की तो वो अंग्रेजों के दौर से चली आ रही है जो की है टोकन एक्सचेंज की। जिसे आज भी देश के कई हिस्सों में अपनाया जा रहा है। अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं की आखिर इसके पीछे बजह क्या है।
ये होता है टोकन एक्सचेंज का मकसद | Indian Railway
आपको बता दें कि टोकन एक्सचेंज सिस्टम को लागून करने का मकसद ट्रेन को सुरक्षित अपने डेस्टिनेशन तक पहुंचाना था,यानी इसका काम ट्रेनों का ठीक और सुरक्षित संचालन करना था। अंग्रेजों के दौर में ट्रैक सर्किट नहीं होता था ऐसे में टोकन एक्सचेंज के जरिए ही ट्रेन को सुरक्षित उसके गंतव्य तक पहुंचाया जाता था।
ट्रैन की टक्कर होने से बचाता है | Indian Railway
आज से करीब 50 साल पहले रेलवे में ट्रैक काफी छोटे छोटे हुआ करते थे। कई जगहों पर एक ही ट्रैक पर आने और जाने वाली ट्रेन चलती थीं ऐसे में टोकन एक्सचेंज ही वह सिस्टम था जो ट्रेन को एक दूसरी ट्रेन से टकराने से बचाता था।
लोकोपायलट आपस में करते हैं एक्सचेंज | Indian Railway
बता दें कि टोकन एक्सचेंज में टोकन लोहे का एक बड़ा छल्ला होता है। स्टेशन मास्टर लोकोपायलट यानी ट्रेन के ड्राइवर को यह छल्ला देता है। लोकोपायलट को टोकन मिलने का यह मतलब होता है कि वह जिस ट्रैक पर गाड़ी चला रहा है वह लाइन पूरी तरह से क्लीयर है उसमें कोई और गाड़ी नहीं है।
जब गाड़ी स्टेशन पर पहुंच जाती है तो ड्राइवर इस टोकन को जमा कर देता है और फिर वह टोकन उस ट्रैक पर चलने वाली दूसरी गाड़ी के ड्राइवर को दे दिया जाता है।