तेहरान। ईरान में हिजाब को लेकर बनाए गए कानून को फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। इसकी वजह ये है कि सरकार को लगा कि कहीं कोई हालात बिगड़ न जाएं इसलिए सावधानी बरती जा रही है। ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियान ने कहा कि उन्होंने देश में सख्त हिजाब कानून लागू किया होता, तो समाज के भीतर एक युद्ध जैसी स्थिति पैदा हो सकती थी। उन्होंने माना कि यह कानून लागू करना समाज को टकराव की ओर धकेल देता और हालात राष्ट्रीय विवाद में बदल जाते। राष्ट्रपति ने साफ कहा कि हिजाब पर उनका निजी विश्वास है। उन्होंने कहा कि “मेरे परिवार की महिलाएं हिजाब पहनती हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि जो महिला हिजाब नहीं पहनती, वह बुरी इंसान है।
2022 में महसा अमीनी की पुलिस हिरासत में मौत के बाद ईरान भर में भड़के प्रदर्शनों ने हिजाब कानून को लेकर गहरी बहस छेड़ दी थी। लाखों महिलाएं और युवा सड़कों पर उतरे थे। इसी माहौल को देखते हुए 2023 में संसद द्वारा पास किए गए कठोर हिजाब कानून को राष्ट्रपति ने लागू करने से रोक दिया। नए कानून के तहत बिना हिजाब दिखने वाली महिलाओं पर भारी जुर्माना और जेल की सजा का प्रावधान था। इतना ही नहीं, उन दुकानदारों या संस्थानों पर भी कार्रवाई होनी थी जो बिना हिजाब महिलाओं को सेवा देते। लेकिन राष्ट्रपति पेजेश्कियान का मानना है कि इस कानून को लागू करने से समाज में फूट और अशांति और बढ़ जाती।
अपने इंटरव्यू में राष्ट्रपति ने यह भी दावा किया कि विरोधी ताकतें, खासकर इजरायल, उम्मीद कर रहे थे कि हिजाब कानून लागू होते ही लोग तीसरे दिन सड़कों पर आ जाएंगे और शासन को गिरा देंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और हालात नियंत्रण में रहे। राष्ट्रपति के बयान के बाद ईरान में एक बार फिर महिलाओं की स्वतंत्रता और परंपरा को लेकर बहस तेज हो गई है। अंतरराष्ट्रीय जगत भी इस पर नजर गड़ाए हुए है कि क्या ईरान भविष्य में कानून को फिर से लागू करेगा या महिला अधिकारों को प्राथमिकता देगा।
ईरान में अशांति के बीच हिजाब कानून पर रोक, हालात गृह युद्ध जैसे

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