H-1B: टेस्ला और स्पेसएक्स के सीईओ एलन मस्क ने आज 30 नवंबर को ज़ेरोधा के को-फाउंडर निखिल कामत के साथ पॉडकास्ट में भारतीय टैलेंट की खुलकर तारीफ की। मस्क ने साफ कहा कि अमेरिका की तरक्की में भारतीयों का योगदान बेहद महत्वपूर्ण रहा है और यूएस को भारतीय प्रतिभा से अपार लाभ मिला है।
अमेरिकी विकास में भारतीयों की बड़ी भूमिका
एलन मस्क ने बातचीत में कहा कि टेक्नोलॉजी और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में भारतीय मूल के लोगों ने अमेरिका को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने भारतीय पेशेवरों की मेहनत और योग्यता की सराहना करते हुए कहा कि अमेरिका की इनोवेशन और अर्थव्यवस्था को भारतीय टैलेंट ने नई दिशा दी है।
वीजा प्रतिबंधों से भारतीयों का अमेरिकी सपना मुश्किल
मस्क का यह बयान ऐसे समय आया है जब अमेरिका में बढ़ते वीजा प्रतिबंधों और अस्थिर नीतियों के कारण हजारों भारतीय स्टूडेंट्स और प्रोफेशनल्स के लिए यूएस में पढ़ाई नौकरी और बेहतर जीवन का सपना कठिन होता जा रहा है। कई लोग अब H-1B वीजा नियमों को लेकर अनिश्चितता महसूस कर रहे हैं।
मस्क बोले प्रतिभाशाली लोगों की हमेशा कमी रहती है
कुछ अमेरिकियों द्वारा विदेशी लोगों को नौकरी छीनने वाला मानने पर मस्क ने कहा कि यह सोच सही नहीं है। उन्होंने कहा कि दुनिया में हमेशा टैलेंटेड लोगों की कमी रहती है और उद्योगों को ज्यादा से ज्यादा योग्य लोग चाहिए। उनके अनुसार जितने अधिक प्रतिभाशाली लोग अमेरिका आएंगे उतना ही देश की कंपनियों और अर्थव्यवस्था को फायदा होगा। मस्क ने कहा कि उनकी कंपनियां भी दुनिया भर से सबसे योग्य प्रतिभा को लाने पर ध्यान देती हैं।
H-1B वीजा का दुरुपयोग भी माना पर कार्यक्रम बंद करने के खिलाफ
एलन मस्क ने माना कि H-1B वीजा का कुछ कंपनियों ने गलत तरीके से इस्तेमाल किया है और कुछ आउटसोर्सिंग कंपनियों ने सिस्टम का फायदा उठाया है। लेकिन उन्होंने साफ कहा कि इस दुरुपयोग के बावजूद H-1B प्रोग्राम को बंद करना बहुत बड़ी गलती होगी। उनके अनुसार यह कदम अमेरिकी कंपनियों को भारी नुकसान पहुंचाएगा क्योंकि उन्हें कुशल तकनीकी कर्मचारियों की कमी का सामना करना पड़ेगा।
ट्रंप सरकार ने बढ़ाई आवेदन फीस आलोचना तेज
लंबे समय से H-1B वीजा भारतीय चीनी और अन्य देशों के इंजीनियरों और वैज्ञानिकों के लिए अमेरिका में करियर बनाने का बड़ा रास्ता रहा है। लेकिन सितंबर में राष्ट्रपति ट्रंप ने नई H-1B आवेदन फीस को बढ़ाकर 100000 डॉलर यानी लगभग 89 लाख रुपये कर दिया। पहले यह फीस लगभग 2000 से 5000 डॉलर थी। यह फैसला उनके समर्थकों की मांग पर आया जिन्होंने H-1B प्रोग्राम में बड़े पैमाने पर दुरुपयोग का आरोप लगाया था।





