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पीरियड्स के बारे में बहुत गहरी बात कहता है गरुड़ पुराण, इस दौरान किन बातों का ध्यान रखे महिलाएं

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गरुड़ पुराण हिंदू धर्म का एक प्रमुख ग्रंथ है, जिसमें न सिर्फ धार्मिक और आध्यात्मिक विषयों पर चर्चा की गई है, बल्कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को लेकर भी महत्वपूर्ण निर्देश दिए गए हैं. इस ग्रंथ में जीवन के हर पहलू पर ध्यान केंद्रित किया गया है और यह व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कल्याण के लिए मार्गदर्शन करता है. विशेष रूप से महिलाओं के मासिक धर्म (पीरियड्स) से संबंधित कई बातें इस पुराण में बताई गई हैं, जो उनके शारीरिक और मानसिक संतुलन को बनाए रखने में मदद करती हैं. इस विषय में अधिक जानकारी दे रहे हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा.

गरुड़ पुराण के अनुसार, मासिक धर्म को एक प्राकृतिक और जरूरी शारीरिक प्रक्रिया माना गया है. इसे महिलाओं के जीवन चक्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया है. इस दौरान महिला को शारीरिक और मानसिक रूप से आराम की जरूरत होती है. गरुड़ पुराण के अनुसार, इस समय महिलाएं अपनी शारीरिक थकान और मानसिक तनाव को कम करने के लिए विश्राम करना चाहिए. यह समय शरीर को फिर से ऊर्जावान बनाने का होता है और इसलिए इसे आराम करने के लिए एक सही समय माना जाता है.

गरुड़ पुराण में यह भी बताया गया है कि इस दौरान महिलाओं को बहुत ज्यादा काम में भाग लेने से बचना चाहिए. इसका कारण यह है कि मासिक धर्म के समय शरीर और मन दोनों पर एक्स्ट्रा प्रेशर होता है. इसलिए यह समय पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों से कुछ समय दूर रहने का होता है. साथ ही, महिलाओं को इस समय शुद्धता बनाए रखने की सलाह दी जाती है, जिससे शारीरिक और मानसिक संतुलन बनाए रखा जा सके. शुद्धता के साथ-साथ मानसिक शांति भी जरूरी है, ताकि किसी भी प्रकार का तनाव न हो और शरीर की ऊर्जा सही दिशा में बनी रहे.
गरुड़ पुराण में यह भी कहा गया है कि इस दौरान महिलाओं को परिवार और समाज से कुछ हद तक अलग रखा जाना चाहिए, ताकि वे शारीरिक और मानसिक रूप से ठीक से खुद को पुनः स्थापित कर सकें. हालांकि, यह सलाह न तो सामाजिक अलगाव के लिए है, बल्कि एक उचित विश्राम और शांति की जरूरत को ध्यान में रखते हुए दी जाती है.
इस पुराण में यह भी बताया गया है कि यदि महिलाएं इस समय पूजा और व्रत करती हैं, तो इससे उनकी शारीरिक और मानसिक स्थिति पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. मासिक धर्म को एक दायित्व या दोष के रूप में न देखकर इसे एक प्राकृतिक प्रक्रिया के रूप में स्वीकार करना चाहिए, ताकि महिलाएं इसके दौरान खुद को सम्मानित और सहज महसूस कर सकें.

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