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निजी भूमि पर वन विभाग की नर्सरी का खुलासा बांस की कटाई के बाद उजागर हुआ मामला राजस्व और वन विभाग आमने-सामने, तहसील प्रशासन की भूमिका सवालों में

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निजी भूमि पर वन विभाग की नर्सरी का खुलासा बांस की कटाई के बाद उजागर हुआ मामला
राजस्व और वन विभाग आमने-सामने, तहसील प्रशासन की भूमिका सवालों में

सांध्य दैनिक खबरवाणी, घोड़ाडोंगरी
वन विभाग पर निजी भूमि कब्जाने का सनसनीखेज मामला उजागर हुआ है। गुरुवार को घोड़ाडोंगरी स्थित बंद पड़े डिपो परिसर में मजदूरों द्वारा बांस की कटाई की जा रही थी। जब भारी मात्रा में बांस दिखाई दिए तो हडक़ंप मच गया और तहकीकात शुरू हुई। जांच में चौंकाने वाला तथ्य सामने आया कि जिस भूमि पर नर्सरी और बांस के पेड़ लगे हैं, वह दरअसल निजी स्वामित्व की है। सूत्रों की मानें तो इस भूमि पर वन विभाग ने वर्षों तक डिपो संचालित किया था और बाद में इसे नर्सरी में बदल दिया। यहां फलदार वृक्ष और बांस के पौधे लगाए गए थे, जिन पर चिडिय़ों और गिलहरियों के घोंसले तक बने हुए हैं।
सीमांकन से खुला राज
भूमि स्वामी द्वारा सीमांकन कराने के बाद स्थिति साफ हुई कि जमीन निजी स्वामित्व की है। इसके बाद भूमि मालिक ने मजदूर लगाकर बांस की कटाई शुरू कराई। भूमि स्वामी अनुपम बाजपेई के अनुसार घोड़ाडोंगरी के पूर्व में रहे तहसीलदार अशोक डेहरिया ने तत्कालीन समय में 2022 में 1600 बांस काटने की अनुमति भी जारी की, जबकि नगरीय क्षेत्र में वृक्ष कटाई की परमिशन देने का अधिकार केवल मुख्य नगर पालिका अधिकारी के पास होता है। इसी बीच पटवारी केशव कांत कोसे (घोड़ाडोंगरी) का बयान भी सामने आया है। उनका कहना है कि वाजपेई वाली जमीन का सीमांकन पहले ही हो चुका है और जमीन उन्हीं की है। एसडीएम साहब ने भी जांच के लिए लिखा था। तहसीलदार साहब और फॉरेस्ट वाले भी आए थे वृक्ष काटने की परमिशन फॉरेस्ट वालों से ही लिए होंगे।
सवालों के घेरे में तहसील प्रशासन
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब रजिस्ट्री और नामांतरण हुआ, तो पजेशन (कब्ज़ा) का पहलू कैसे नजऱअंदाज किया गया। क्या सीमांकन में कब्जाधारी वृक्ष-पौधों का विवरण दर्ज नहीं हुआ? क्या राजस्व न्यायालय की धारा 250 के तहत विधिवत पजेशन की कार्रवाई किए बिना ही जमीन से कब्जा हटाने के लिए बास काटे जा रहे हैं जोकि वन विभाग के प्लांटेशन का हिस्सा जिस स्थान पर बास काटे गए हैं वहां फॉरेस्ट की फेंसिंग है और फेंसिंग के अंदर यह बास काटे गए हैं मौके पर फॉरेस्ट के द्वारा किए गए प्लांटेशन में आंवले के पेड़ भी स्थित है।
क्या तहसील प्रशासन और वन विभाग आमने-सामने खड़ा हो गया है?
डीएफओ नवीन गर्ग ने जांच दल गठित किया है और तहकीकात जारी है। वहीं, कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि राजस्व अमले की कार्यप्रणाली ने ही इस विवाद को जन्म दिया है। अब मामला और गंभीर हो गया है क्योंकि वन विभाग इस जमीन लगे बास और फलदार हरे भरे वृक्षों को कटाई होने से बचाने में लगा है, जबकि भूमि स्वामी कानूनी अधिकार के आधार पर कटाई करवा रहा है। विवाद गहराकर सीधे तहसील प्रशासन और वन विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर रहा है।

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