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जल्दी आया मानसून बना किसानों के लिए वरदान, फसलों के पैटर्न में दिखा बड़ा बदलाव

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समय से पहले मानसून के आगमन से खरीफ फसलों के उत्पादन में वृद्धि होगी। आनंद राठी की रिपोर्ट के अनुसार अब तक बुवाई क्षेत्र में 11 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जिससे फसल उत्पादन में बढ़त की उम्मीद है।

मक्का की खेती के क्षेत्रफल में हुई बढ़ोतरी 

इसमें आगे कहा गया है कि मानसून के जल्दी आने के कारण फसल के पैटर्न में बदलाव आया है। इससे खास तौर पर मक्का की खेती का क्षेत्रफल बढ़ा है। लेकिन दक्षिण और पश्चिम भारत में कुछ क्षेत्रों में अब मकई की जगह कपास की बुआई की जा रही है। हालांकि, बीते सीजन की कम बचत (स्टॉक) के चलते इस बार भंडारण की संभावनाएं भी अधिक हैं। वहीं मक्का संकर बीजों में 20 प्रतिशत की वृद्धि की उम्मीद है। 

कीमतें स्थिर रहने की संभावना 

इसके अलावा, घरेलू और वैश्विक कीमतें काफी हद तक स्थिर हैं और आने वाले समय में दामों में बड़ी वृद्धि की संभवाना कम है। यह स्थिति तकनीकि इनपुट निर्माताओं के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है, क्योंकि स्थिर कीमतों और बढ़ते वॉल्यूम के चलते उन्हें मजबूत सीजन की उम्मीद है। 

घरेलू कंपनियों के ग्रोथ को मिलेगा बढ़ावा

इसमें कहा गया कि हमारा मानना है कि सबसे बुरा दौर काफी हद तक पीछे छूट चुका है और क्षेत्र धीरे-धीरे सुधार की ओर बढ़ रहा है। इस साल मानसून के जल्दी आने के कारण धारणा सकारात्मक है, जिससे घरेलू कंपनियों के ग्रोथ को बढ़ावा मिलेगा। इसके अलावा हमें 8 प्रतिशत की मामूली वार्षिक राजस्व वृद्धि की उम्मीद है, जिसे आंशिक रूप से खरीफ सीजन में घरेलू मात्रा वृद्धि से समर्थन मिलेगा। हम घरेलू कृषि रसायन में 6 प्रतिशत, निर्यात में 11 प्रतिशत और बीज में 10 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि की उम्मीद करते हैं। बेहतर उत्पादन मिश्रण और अधिक दक्षता पर ध्यान केंद्रित करने के कारण हमें पहली तिमाही में 13.2 प्रतिशत ईबीआईटीडीए (ब्याज, कर, मूल्यह्रास और परिशोधन से पहले की कमाई) मार्जिन की उम्मीद है।

कृषि-रसायन क्षेत्र में सुधार की उम्मीद 

रिपोर्ट के अनुसार, घरेलू कृषि-रसायनों में सालाना आधार पर 8 प्रतिशत की वृद्धि होने की संभावना है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कृषि रसायन क्षेत्र में सुधार हो रहा है। यह पिछले कुछ समय से काफी दबाव में था, जिसका मुख्य कारण प्रमुख क्षेत्रों में प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियां, चीन द्वारा वैश्विक चैनल स्टॉक की अधिक डंपिंग, कीमतों पर दबाव बढ़ना, भू-राजनीतिक तनाव और टैरिफ अनिश्चितताएं थी।

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