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एकादशी के दिन चावल को हाथ भी न लगाना…महर्षि मेधा के शरीर से की जाती है तुलना

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हिंदू धर्म में हर तिथि और हर वार का बहुत महत्व होता है. हर महीने में दो एकादशी तिथियां आती हैं, एक शुक्ल पक्ष की और एक कृष्ण पक्ष की. हर एकादशी तिथि का अपना अलग महत्व होता है. एकादशी के दिन कई लोग व्रत कर नियमों का पालन करते हैं, जिससे भगवान विष्णु प्रसन्न हों. एकादशी के दिन कई ऐसे नियम शास्त्रों में बताए गए हैं, जिनका पालन करना बेहद जरूरी होता है. अक्सर आपने देखा होगा कि घर के बड़े-बुजुर्ग एकादशी के दिन चावल खाने या बनाने को मना करते हैं. इसके पीछे क्या वजह है, आइए जानते हैं उज्जैन के आचार्य आनंद भारद्वाज से.

सावन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 21 जुलाई को होगी. 21 जुलाई को कामिका एकादशी मनाई जाएगी. एक पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि मेधा ने मां के क्रोध से बचने के लिए अपनी योग शक्तियों के माध्यम से शरीर का त्याग कर दिया और उनका अंश पृथ्वी में समा गया. यह घटना एकादशी के दिन हुई थी. उन्होंने जौ और चावल के रूप में जन्म लिया. माना जाता है कि एकादशी के दिन चावल और जौ खाने की तुलना महर्षि मेधा के शरीर से की जाती है, इसलिए एकादशी के दिन चावल नहीं खाए जाते हैं.

एकादशी के दिन इन नियमों का भी करें पालन

एकादशी के दिन गलती से भी चावल का सेवन न करें, साथ ही एकादशी व्रत के दिन मांस-मदिरा, लहसुन-प्याज जैसी तामसिक चीजों से दूर रहना चाहिए. एकादशी व्रत रख रहे हैं, तो झूठ बोलने से बचें और किसी के लिए अपशब्द का प्रयोग न करें. एकादशी के दिन तुलसी तोड़ना वर्जित माना गया है, तो पूजा के लिए एक दिन पहले ही तुलसी तोड़कर रख लें.

लक्ष्मीनारायण की पूजा से सभी दुखों का नाश

बताते चलें कि एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है. मान्यता है कि एकादशी के दिन व्रत रखकर लक्ष्मीनारायण की पूजा करने से सभी दुखों का नाश होता है और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. वहीं सावन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी काफी खास होती है क्योंकि इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु की कृपा पाने का सबसे अच्छा अवसर होता है.

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