जिले के कॉलोनाईजर नहीं करते नियमों की चिंता, जिम्मेदार अधिकारी भी नहीं दे रहे ध्यान
रेरा की अनुमति के बिना धड़ल्ले से बन रही कॉलोनियां
सांध्य दैनिक खबरवाणी, बैतूल
रेरा यानी रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी जिसका स्थापना प्रत्येक राज्य में रियल एस्टेट विनियमन और विकास अधिनियम 2016 के तहत की गई थी जिसका उद्देश्य घर खरीदारों के हितों की रक्षा करना और रियल एस्टेट क्षेत्र में पारदर्शिता और जवादारी लाना है। यह अधिनियम प्रमोटरों (बिल्डरों) को परियोजना की जानकारी, कानूनी जानकारी, वित्तीय जानकारी, प्राधिकरण के साथ पंजीकृत कराने के लिए अनिवार्य करता है। वहीं रेरा घर खरीदारों को धोखेबाज बिल्डरों और भ्रामक विज्ञापनों से बचाने के साथ ही समय पर डिलेवरी सुनिश्चित करता है।
बैतूल जिले में और खासकर शहर में कुकुरमुत्ते की तरह कॉलोनाईजर तैयार हो रहे हैं, जिन्हें जमीन को प्लाट की शक्ल में बांटकर बेचने और मुनाफा कमाने से मतलब है, जबकि रेरा अधिनियम के लागू होने के पश्चात अब कॉलोनाईजर द्वारा खरीदार को चूना लगाना लगभग असंभव हो गया है। परंतु नगर के अधिकतर कॉलोनाईजर रेरा को ठेंगा दिखाते हुए न तो रेरा पंजीयन कराते हैं और न ही रेरा की शर्तों का पालन करते हैं। रेरा अधिनियम 2016 की धारा 3 के अनुसार कोई भी बिल्डर बिना रेरा अनुमति के निर्माण कार्य तो शुरू कर सकता है पर न तो उस कॉलोनी या प्रोजेक्ट का विज्ञापन अथवा विक्रय कर सकता है। वहीं रेरा की धारा 59 ऐसा करने पर पूरे प्रोजेक्ट की लागत की 10 प्रतिशत राशि बतौर जुर्माना वसूल सकती है और यदि कोई बिल्डर लगातार इसका उल्लंघन करता है तो धारा 59 (2) के अनुसार उसे जेल भी हो सकती है।
रेरा नियमों के अनुसार बैतूल जिले के ज्यादातर कॉलोनाईजर सरेआम रेरा नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए न तो रेरा में पंजीयन कराते हैं और जो रेरा में पंजीयन के लिए आवेदन करते हैं उसे ही अनुमति मानकर काम शुरू कर देते हैं। सभी कॉलोनाईरों को सबसे पहले टाउन एण्ड कंट्री प्लानिंग से नक्शा पास कराना और अन्य अनुमति लेनी होती है उसके बाद विकास की अनुमति नगरीय क्षेत्र में नगरपालिका से और ग्रामीण क्षेत्र में अनुविभागीय अधिकारी से लेनी होती है, इसके पश्चात सभी दस्तावेजों के साथ रेरा में पंजीयन हेतु आवेदन देना होता है पर जिले के अधिकतर कॉलोनाईजर सिर्फ टीएनसीपी की अनुमति और कुछ कॉलोनाईजर और नगरपालिका में विकास शुल्क जमा करने के बाद भी विक्रय और विज्ञापन शुरू कर देते हैं जो कि रेरा के नियमों का सरेआम उल्लंघन है। वैसे टीएनसीपी और नगरपालिका की भी जिम्मेदारी बनती है कि जब नक्शा पास करते हैं, तो उन्हें शर्तों में इस बात का उल्लेख करना चाहिए कि शासन के अन्य नियमों विशेषकर रेरा अनुमति के बिना विज्ञापन और विक्रय प्रारंभ न करें।
बिना रेरा अनुमति के विक्रय और निर्माण किए जाने वाली सभी कॉलोनी अवैध कॉलोनी की श्रेणी में आती है। जिनमें समय-समय पर राजनीतिक दबाव और पहुंच के चलते विभिन्न निर्माण कार्य विशेषकर सडक़, बिजली, पानी इत्यादि नगरपालिका द्वारा अपने मद से किए जाते हैं, और यह राशि नगरपालिका टैक्स के रूप में नगरवासियों से वसूल करती है। वर्षों से चली आ रही इस प्रक्रिया के चलते कॉलोनाईजर बेखौफ अवैध कॉलोनियों का निर्माण कर अपनी जेब भर रहे हैं।
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सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने से कतरा रहे कॉलोनाईजर
इन अवैध कॉलोनियों में निवास कर रहे रहवासियों के निस्तार का विभिन्न जलस्रोतों में जा रहा है जो कि उन्हें प्रदूषित कर रहा है। इसके लिए जब कॉलोनाईजर को कॉलोनी निर्माण की अनुमति दी जाती है तो उसे निस्तार के पानी और मल के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण करना आवश्यक है जिससे यह अपशिष्ट पानी में मिलकर उसे प्रदूषित नहीं करे और इसका ठीक तरह से निष्पादन हो सके। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (स्ञ्जक्क) का निर्माण सीवेज को शुद्ध करने और स्वच्छ, सुरक्षित पानी उत्पन्न करने के लिए किया जाता है, ताकि पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य को दूषित होने से बचाया जा सके। यह संयंत्र घरों, वाणिज्यिक और औद्योगिक क्षेत्रों से आने वाले अपशिष्ट जल से गंदगी, हानिकारक बैक्टीरिया, रसायन और अन्य प्रदूषकों को हटाता है। इसके बाद, उपचारित जल को नदियों, झीलों या महासागरों में सुरक्षित रूप से छोड़ा जाता है, या पुन: उपयोग के लिए तैयार किया जाता है, जिससे जल प्रदूषण कम होता है और पारिस्थितिक तंत्र सुरक्षित रहता है।
विकास और निर्माण में देरी पर अर्थदंड और मुआवजे का प्रावधान
रेरा के नियमों के अनुसार कॉलोनाईजर को अनुमति के साथ ही समयसीमा दी जाती है जिसके अंदर निर्माण और विकास कार्य पूरा कर कॉलोनी को हैंडओवर करना होता है यदि समयसीमा के अंदर निर्माण कार्य पूरा नहीं होता तो उस पर रेरा द्वारा अर्थ दंड लगाया जाता है और खरीदार को भी देरी के कारण हो रहे नुकसान का मुआवजा देने का प्रावधान है पर अधिकतर कॉलोनाईजर हैंडओवर की प्रक्रिया तक वर्षों देरी करने के बाद भी नहीं पहुंचे हैं और जिसका सीधा नुकसान खरीदार को हो रहा है।