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चने की अच्छी किस्म: मार्केट में आई चने की 5 वैरायटी जो देती है अच्छी पैदवार।

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जानें, कौनसी है चने की यह टॉप 5 किस्में और इससे कितना हो सकता है लाभ 

रबी सीजन की फसलों में चने का भी अपना एक अलग ही स्थान है। चने की खेती (Gram cultivation) मुख्य रूप से मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक व उत्तरप्रदेश में की जाती है। इसमें सबसे अधिक इसकी खेती मध्यप्रदेश में होती है। चने में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, आयरन व नियासीन की अच्छी मात्रा होती है। चने का दानों से दाल बनाई जाती है जिसे पकाकर खाया जाता है। वहीं इसे पीसकर बेसन बनाया जाता है जिससे कई प्रकार के व्यंजन व मिठाइयां बनाई जाती है। इसके अलावा भी हरी चने की सब्जी बनाकर खाई जाती है और इसके भूसे को चारे के रूप में पशुओं को खिलाया जाता है।

चने की खेती (Gram cultivation) से भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती है। दलहनी फसल होने के कारण यह भूमि से नाइट्रोजन को एकत्रित करके भूमि में पहुंचाती है जिससे भूमि ऊपजाऊ बनती है। इसलिए किसान को भूमि की उर्वरकता बनाए रखने के लिए दलहनी फसल की खेती भी करना चाहिए। चने की बाजार मांग भी काफी अच्छी रहती है। इसमें चने की दाल और बेसन की मांग 12 महीने रहती है। ऐसे में किसान चने की खेती करके काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। चने की खेती से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए चने की उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिए।

आज हम खबरवाणी के माध्यम से चने की टॉप 5 किस्मों की जानकारी दे रहे हैं, जिन्हें कृषि विभाग, नई दिल्ली और आईसीएआर के प्री-रबी इंटरफेस 2023 के दौरान प्रस्तावित किया गया है, तो आइये जानते हैं चने की इन टॉप 5 किस्मों के बारें में।

चने की पूसा पार्वती किस्म (बीजी 3062) (Pusa Parvati (BG 3062))

चने की पूसा पार्वती (बीजी 3062) किस्म को संस्थान ने 2020 में विकसित की। यह किस्म 113 दिन की अवधि में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से करीब 22.94 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। इस किस्म को मध्यप्रदेश, छतीसगढ़, उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान के कुछ हिस्सों के लिए उपयुक्त है।

चने की फुले विक्रम किस्म (फुले जी 08108) (Phule Vikram ( Phule G 08108))

संस्थान द्वारा चने की इस किस्म को भी 2020 में विकसित किया गया। इस किस्म से करीब 22.94 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। यह किस्म 113 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म को मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड क्षेत्र, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान के कुछ भागों में बुवाई के लिए उपयुक्त है।

चने की जेजी 24 (JG 2016-24)

चने की यह किस्म संस्थान की ओर से 2020 में विकसित की गई। यह किस्म 115 दिन की अवधि में पककर तैयार हो जाती है। इससे किसान 22.37 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त होती है। चने की इस किस्म की खेती मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र सहित महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान के कुछ भागों में की जा सकती है।

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चने की आरवीजी 204 (आरवीएसएसजी 8102) (RVG 204 (RVSSG 8102))

संस्थान की ओर से चने की इस को साल 2021 में विकसित किया गया। यह किस्म करीब 22.32 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक पैदावार देती है। इस किस्म को तैयार होने पर करीब 111 दिन लगते हैं। चने की इस किस्म को मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान के कुछ भागों के लिए उपयुक्त पाया गया है।

चने की धीरा (एनबीईजी 47) (Dheera (NBeG 47))

चने की इस किस्म को साल 2017 में विकसित किया गया। यह किस्म 90 से लेकर 105 दिन की अवधि में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह चने की जल्दी तैयार होने वाली किस्म है। चने की यह किस्म आंध्रप्रदेश के लिए उपयुक्त पाई गई है। इस किस्म से 18 से 20 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

चने की बुवाई का तरीका

चने में को बीमारियों व कीटों से बचाव के लिए इसके बीजों को उपचारित करके ही बोना चाहिए। बीजों को उपचारित करते समय इस बात का ध्यान रखें कि पहले इसे फफूंदीनाशी से उपचारित करें और इसके बाद बीजों को राजोबियम कल्चर से उचारित करना चाहिए। बारानी खेती के लिए 80 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर बीज की मात्रा पर्याप्त रहती है। वहीं सिंचित क्षेत्र के लिए बीज की मात्रा 60 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर के हिसाब से रखी जाती है। चने के बीजों की गहराई बारानी फसल के लिए 7 से 10 सेमी, तथा सिंचित क्षेत्र के लिए 5 से 7 सेमी रखनी चाहिए। बीजों की बुवाई करते समय पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 से 50 सेमी रखनी चाहिए।

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