Search ई-पेपर ई-पेपर WhatsApp

Cactus Farming – गाय-भैंस और भेड़-बकरियों के लिए चारे का काम करती हैं कैक्टस की ये किस्मे 

By
On:

जाने कैसे इस गुणकारी पौधे की खेती कर आप कमा सकते हैं लाखों का मुनाफा 

Cactus Farmingशहरों और कस्बों में लोग अपने बाग-बगिचों में कैक्टस, जिसे नागफनी भी कहा जाता है, बड़े शौक से लगा रहे हैं। यह सिर्फ़ एक शौक ही नहीं है, बल्कि रेगिस्तानी क्षेत्रों में भी यह पौधा विकसित हो रहा है, जिसे ऊंट भी बड़े चाव से खा रहे हैं। इस पौधे की कई किस्में हैं जो बिना कांटे वाली हैं और इन्हें गाय-भैंस और भेड़-बकरी को खिलाया जा सकता है। नागफनी पौष्टिक तत्वों से भरी होती है, जिससे पशुओं का स्वास्थ्य बना रहता है और दूध की मात्रा बढ़ती है। इसकी खास बात यह है कि इसके लिए सिंचाई की आवश्यकता नहीं है और कम उपजाऊ बालूई मिट्टी में भी यह आसानी से फलित होती है। नागफनी की इस पौष्टिक चारे की खेती कैसे करें, इसके बारे में हम यहाँ समझेंगे, ताकि आप दुधारू पशुओं के आहार के साथ संतुष्ट रह सकें।

कैक्टस के पौधे सूखे में भी जीवित रहने की अद्वितीय क्षमताओं से सुसज्जित हैं। आमतौर पर इसे एक अनउपयोगी पौधा माना जाता है, लेकिन किसान इस पौधे से अच्छी आमदनी कमा सकते हैं। क्योंकि कैक्टस में महत्वपूर्ण खनिज और पोषण तत्वों की भरपूर मात्रा होने से यह एक पूर्ण आहार स्रोत है, कैक्टस को पशुओं के खिलाने के लिए बेहद पौष्टिक माना जाता है। शोध में देखा गया है कि जानवर इसे आसानी से खा लेते हैं और पाचन में कोई दिक्कत नहीं होती है। इसके अलावा, गर्मी के दिनों में इसे जानवरों को खिलाने से उन्हें गर्मी और डिहाइड्रेशन से बचाया जा सकता है। कैक्टस के सेवन से दूध उत्पादन और पशुओं का स्वस्थ विकास हो सकता है।

कैक्टस से प्राप्त बायोमास को विभिन्न उत्पादों में परिणामी रूप से बदलकर, विभिन्न उत्पादों के लिए एक स्रोत उत्पन्न हो रहा है, जैसे की मुरब्बा, जूस, अमृत, कैंडी, मादक पेय, अचार, सॉस, शैंपू, साबुन, और लोशन आदि। इससे किसानों के लिए यह एक उत्तम आय स्रोत बन रहा है। कैक्टस की खेती में किसानों को ऊर्जा और पानी की बचत हो रही है। कैक्टस के पौधे बड़ी मात्रा में बायोमास उत्पन्न करते हैं, जिससे किसानों को खेतों में बेहतर उपज मिलती है। इससे साथ ही, कैक्टस से प्राप्त बायोमास को विभिन्न उत्पादों में बदलकर, विभिन्न उत्पादों के लिए एक स्रोत उत्पन्न हो रहा है, यानी किसान नागफनी की खेती कर मुनाफा कमा सकते हैं। पिछले महीने, ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री गिरिराज सिंह ने एक सेमिनार में वाटरशेड परियोजनाओं में हरित हरियाली के लिए कैक्टस की खेती को बढ़ावा देने पर प्रेरित किया था।

पशुओं के लिए चारे का काम करेगा कैक्टस | Cactus Farming 

डेयरी पशुओं और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में काम करने वाली बाएफ पूना नाबार्ड के साथ मिलकर एक परियोजना चला रही है, जिसमें किसान वर्तमान में अपनी बकरियों, भेड़ों, गायों और भैंसों को खिलाने के लिए कैक्टस क्लैडोड का उपयोग कर रहे हैं। बाएफ पूना के अनुसार, वयस्क बकरियां प्रतिदिन 3-4 किलोग्राम कैक्टस स्वेच्छा से खा लेती हैं, जबकि दूध देने वाली गायें प्रतिदिन मोटे चारे के साथ 7-8 किलोग्राम कैक्टस को खिला सकती हैं। कैक्टस को खिलाने से पशुओं के शरीर के वजन और दूध उत्पादन में बेहतर वृद्धि हुई है।

कैक्टस की अच्छी किस्में 

कैक्टस मुख्य रूप से भारत में पाई जाती है, जैसे कि कैक्टस 1270, कैक्टस 1271, और टेक्सास 1308। इसके अलावा, एपंटिया फिकस-इंडिका (Apuntia Ficus-Indica) जिसे कैक्टस नाशपाती (Cactus pear) और इंडियन फिग (भारतीय अंजीर) भी कहा जाता है, इन प्रजातियों के कांटे नहीं होते हैं और इनकी खेती के लिए कम पानी की जरूरत होती है। इसलिए, इन्हें रेगिस्तान की बंजर भूमि में भी अच्छी तरह से उगाया जा सकता है।

खेती करने की प्रक्रिया | Cactus Farming 

भारत में वर्षा-आधारित विशाल क्षेत्रों में कैक्टस को पानी की कमी के साथ उगाया जा सकता है। देश भर के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में उपलब्ध रेगीस्तान, बंजर भूमि, और खारी मिट्टी में भी इसकी खेती की जा सकती है। कैक्टस की खेती से हरे चारे, सामुदायिक बायोगैस, बायो सीएनजी, बायो लेदर, और फार्मास्युटिकल और औद्योगिक उत्पादों जैसे कई उपयोग हो सकते हैं। कैक्टस की खेती जून-नवम्बर बुवाई तक की जा सकती है और इसे क्लैडोड के माध्यम से बोया जा सकता है। खेत में 60 से 80 सेंटीमीटर गहरी जुताई के बाद प्रति एकड़ 6 टन कम्पोस्ट खाद डालना चाहिए। इसकी खेती के लिए 72 किलो यूरिया, 40 किलो डीएपी, 15 किलो एमओपी की आवश्यकता होती है। कैक्टस के पौधे को एक मीटर की दूरी पर लगाना चाहिए और पौधे के बीच की दूरी को 40 सेंटीमीटर रखना चाहिए। पौधे को गड्ढा में लगाने पर ध्यान देना चाहिए, ताकि पौधा ठीक से जमीन में स्थिर रहे। पौधे 5-6 महीने में एक मीटर तक बढ़ जाते हैं और इसके बाद तने को काटना चाहिए। चारे के लिए नियमित रूप से 6 महीने के अंतराल पर कटाई की जा सकती है, जिससे हर साल प्रति एकड़ 20 टन हरा चारा मिल सकता है

Source – Internet  
For Feedback - feedback@example.com

Related News

Home Icon Home E-Paper Icon E-Paper Facebook Icon Facebook Google News Icon Google News