देहरादून. उत्तरकाशी के धराली में आई आपदा ने सब कुछ तबाह कर दिया. इसने न सिर्फ इंसानों के आशियानों को उजाड़ा बल्कि पौराणिक महत्त्व रखने वाले प्राचीन मंदिरों को भी अपनी चपेट लिया और वे मलबे में दब गए. एक ऐसा ही मंदिर कल्प केदार मंदिर भी था. खीरगंगा की तबाही की ऐसी तस्वीर पहली बार लोगों ने नहीं देखी है, बल्कि इससे पहले भी खीरगंगा के भयानक रूप को देखा है. कल्प केदार मंदिर, 19वीं शताब्दी की शुरुआत में भी खीरगंगा में आई आपदा की मार को झेल चुका था. बीते 5 अगस्त को धराली में खीरगंगा से आई आपदा के चलते कल्प केदार मंदिर दोबारा मलबे में दब गया.
भगीरथ मंदिर से कनेक्शन
कल्प केदार मंदिर, कत्यूरी शैली का बना हुआ जिसे 17वीं सदी में बनवाया गया था. पांडवों ने इसका निर्माण करवाया. 19वीं शताब्दी की शुरुआत में खीरगंगा में आपदा आई थी जिसके बाद यह मंदिर मलबे में दब गया था. यहां रहने वाले लोगों को इसका ऊपरी हिस्सा नजर आया तो साल 1945 में इसकी खुदाई हुई और रिसर्च की गई, जिसमें पता चला कि यह मंदिर कत्यूरी शैली का बनाया गया. इस मंदिर का पुनःनिर्माण करवाया गया. यह मंदिर खुदाई के बावजूद भी 6-7 फीट नीचे दबा हुआ था और ऊपर 12-13 ऊपर नजर आता था.
साल में एक पूजा
कल्प केदार मंदिर, कई फीट नीचे गहरा दबा था. इस मंदिर में सफेद शिवलिंग है, जिसकी साल में एक ही बार पूजा होती है क्योंकि यह पानी में डूबा रहता है, जिसका पानी साल में एक बार निकाला जाता है तभी पूजा हो पाती है. इसलिए मंदिर के सामने ऊपरी भाग में एक शिवलिंग और नंदी को स्थापित किया गया था. मंदिर के बाहर नंदी, शेर और घड़े की आकृति उकेरी गई. धराली का पुराना नाम श्याम प्रयाग है. यह स्थान खीरगंगा और भगीरथी नदी का संगम है. कल्प केदार मंदिर का गर्भगृह हमेशा पानी में डूबा रहता है. भगीरथी नदी के पानी से मंदिर का कनेक्शन भी है. ओम द्विवेदी कहते हैं कि इस क्षेत्र में कल्प केदार जैसे लगभग 240 प्राचीन मंदिरों का समूह था जो धराली में आई आपदा में जमीदोंज होते गए.