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परवेज मुशर्रफ बिक गए थे! भारत-पाकिस्तान 2002 में थे युद्ध के कगार पर, अमेरिका के पूर्व अधिकारी का सनसनीखेज खुलासा

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अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA के पूर्व अधिकारी जॉन किरीआकू (John Kiriakou) ने बड़ा खुलासा किया है। उन्होंने बताया कि साल 2002 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की स्थिति बन गई थी। दिसंबर 2001 में भारतीय संसद पर आतंकी हमला और उसके बाद चला ऑपरेशन पराक्रम दोनों देशों के बीच तनाव को चरम पर ले गया था। किरीआकू ने कहा कि उस वक्त अमेरिका को युद्ध का इतना डर था कि उसने इस्लामाबाद में रह रहे अमेरिकी परिवारों को तुरंत निकाल लिया था।

अमेरिका ने मुशर्रफ को खरीदा था अरबों डॉलर में

जॉन किरीआकू ने खुलासा किया कि अमेरिका ने उस दौर में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को अरबों डॉलर देकर “खरीद” लिया था। अमेरिका ने पाकिस्तान को भारी आर्थिक सहायता दी, जिसके बदले में पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर भी अमेरिकी नियंत्रण हासिल कर लिया गया था। किरीआकू ने बताया कि एक समय ऐसा आया जब मुशर्रफ ने अपने परमाणु हथियारों की चाबियां अमेरिका को सौंप दी थीं।

सऊदी अरब ने भी निभाई अहम भूमिका

किरीआकू के मुताबिक, पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम में सऊदी अरब की सीधी दखलंदाजी थी। सऊदी सरकार ने पाकिस्तान के वैज्ञानिक ए.क्यू. खान को हर तरह से बचाया और उनके नेटवर्क को सुरक्षा दी। उन्होंने कहा कि सऊदी अरब और पाकिस्तान के रिश्ते धार्मिक और सामरिक दोनों स्तर पर बेहद गहरे रहे हैं, और इस रिश्ते का फायदा अमेरिका ने भी उठाया।

परवेज मुशर्रफ का ‘डबल गेम’

जॉन किरीआकू ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ पर बड़ा आरोप लगाते हुए कहा कि मुशर्रफ अमेरिका और पाकिस्तान दोनों के साथ दोहरा खेल खेल रहे थे। एक ओर वे अमेरिका के सामने आतंकवाद के खिलाफ सहयोग का दिखावा करते थे, जबकि दूसरी ओर भारत के खिलाफ आतंकवादी संगठनों को खुला समर्थन दे रहे थे। पाकिस्तानी सेना का असली दुश्मन अल-कायदा नहीं, बल्कि भारत था।

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अमेरिका पर गंभीर आरोप

किरीआकू ने कहा कि अमेरिका लोकतंत्र और मानवाधिकारों का झंडा तो उठाता है, लेकिन असल में वह सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए काम करता है। उन्होंने कहा, “अमेरिका को केवल तेल और हथियारों से मतलब है। वह सऊदी अरब से तेल खरीदता है और उन्हें हथियार बेचता है। यही असली रिश्ता है अमेरिका और सऊदी अरब के बीच।”

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