Betul Video:परम्परा ऐसी की डालनी पड़ती जान जोखिम में

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बैतूल (कुलदीप भाटिया ) – परपंरा के लिए आज भी लोग अपनी जान जोखिम में डालते है । रोंढा गांव में 100 साल से चली आ रही परम्परा को लोग आज भी निभा रहे है ।

होली के बाद लगने वाले मेघनाथ मेले में जैरी तोड़ने की परंपरा को निभाते हुए एक व्यक्ति 55 फीट ऊंचे खंबे पर चढ़ता है । इस खंभे को चिकना करने के लिए ग्रीस और आयल लगाया जाता है ।

हर साल होली के बाद मेघनाथ मेले का आयोजन किया जाता है । जिसमें आसपास के गांव के सभी लोग आते हैं । इस मेले की खास बात यह है कि यहां लगभग 100 सालों से एक परंपरा चली आ रही है ।जिसमें जेरी तोड़ने की परंपरा है ।

यह गिरी सागौन की लकड़ी की होती है जिसकी लंबाई लगभग 55 से 60 फिट होती है । पुराने समय में सवा रुपये और नारियल जैरी में बांधा जाता था अब 11 रुपये और नारियल बांधा जाता है । जो व्यक्ति जरी तोड़ता है नीचे उतरने के बाद उसे ग्राम प्रधान द्वारा प्रोत्साहन राशि दी जाती है।

55 फ़ीट ऊंचे खंभे जिसे जैरी कहते हैं । उस पर आयल और ग्रीस के अलावा और भी कई तरह के तरल पदार्थ लगाते लगाए जाते हैं । जिससे खंबा चिकना हो जाए और इस चिकने खंबे पर ऊपर चढ़ना मुश्किल हो जाता है ।चढ़ने वाले व्यक्ति अगर फिसल जाए तो उसकी जान भी जा सकती है ।

पिछले 28 साल से जान जोखिम में डालकर परंपरा को निभाने वाले गज्जू का कहना है कि जरी पर चढ़ना रस्सी के सहारे चढ़ते हैं । डर नहीं लगता है रुपए की भी कोई बात नहीं है परंपरा को बरकरार रखने के लिए जैरी पर चढ़ते हैं और जैरी के सिरे पर बंधे रुपये और नारियल तोड़ कर नीचे लाते है ।

मेघनाथ मेले की खास बात है अगर जेरी नहीं टूटी तो मेला तब तक लगेगा जब तक जैरी नहीं टूटेगी । जैरी की परंपरा को लेकर बुजुर्ग बताते हैं कि यह खतरनाक है लेकिन परंपरा है और अभी तक कोई घटना नहीं घटी है ।

खंबे पर चढ़ने वाले गज्जू का कहना है कि पिछले 28 साल से जैरी तोड़ रहे हैं रस्सी के सहारे ऊपर चढ़ते हैं जैरी का खंबा बहुत चिकना होता है डर नहीं लगता ताकत आजमाना पड़ती है ।

कार्यक्रम के आयोजक अखिलेश का कहना है कि यह परंपरा 100 साल से चली आ रही है लगभग 55 से 60 फीट ऊंचा खंबा रहता है जिसे जेरी कहते हैं इस पर आयल और ग्रीस जैसे तरल पदार्थ लगाकर चिकना किया जाता है जरी के ऊपर 11 रुपये और नारियल बांधा जाता हैं इस पर चढ़ने में एक घंटा लगता है।

रोंढा निवासी प्रदीप का कहना है कि इस जेरी पर चढ़ने में जान का जोखिम रहता है पर परंपरा चली आ रही है और इसे मेघनाथ का मेला भी कहते हैं हर साल यह आयोजन होता है ।

इस परंपरा को लंबे समय से देखते आ रहे बुजुर्ग माधो राव का कहना है कि जब से होश संभाला तबसे जैरी पर सवार रुपए और नारियल बांधा जाता था अब 11रुपये और नारियल बांधा जाता है जैरी पर चढ़ना खतरनाक है पर परंपरा है और अभी तक कोई घटना भी नहीं घटी है ।

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