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पहले बैतूल के स्थानीय सांसद चुने गए थे आहूजा

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कांग्रेस के स्थानीय प्रत्याशी पर नहीं है जनता का भरोसा।

बैतूल। 1952 में बैतूल संसदीय सीट का गठन किया गया था जिसमें उस समय बैतूल जिले के अलावा छिंदवाड़ा जिले के पांढुर्णा और सौंसर क्षेत्र शामिल थे और जिले के बाहर के भीकूलाल चांडक कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में जिले के पहले सांसद बने थे। लेकिन इन 72 वर्षों में जिले के स्थानीय नेता के रूप में पहला सांसद बनने का गौरव सुभाष आहूजा के नाम दर्ज है। जो 1977 में जनता पार्टी प्रत्याशी के रूप में मात्र 28 वर्ष की आयु में सांसद निर्वाचित हुए थे। लेकिन इन 72 वर्षों में कांग्रेस के किसी भी स्थानीय प्रत्याशी पर संसदीय क्षेत्र की जनता ने भरोसा नहीं किया।

आहूजा ने फहराया था जीत का परचम

1952 से 1971 तक जनसंघ(अब भाजपा) ने भी बाहरी नेताओं को बैतूल से चुनाव लड़वाया था लेकिन ये सब हार गए। इनमें सुंदरलाल राय, मुम्बई पं. डॉ. बसंत कुमार के शामिल हैं। लेकिन 1975 में जबलपुर से युवा तुर्क शरद यादव को सभी विपक्षी दलों ने उपचुनाव में उम्मीदवार बनाया और उसने जीत हासिल करी। इसी के साथ देश में सभी दलों ने मिलकर जनता पार्टी का गठन किया और बैतूल से भी युवा नेता के रूप में 28 वर्षीय सुभाष आहूजा को उम्मीदवार बना दिया था जिन्होंने कांग्रेस के दिग्गज एवं बाद में केंद्रीय मंत्री बने नरेंद्र कुमार साल्वे को 87 हजार 923 मतों के बड़े अंतर से चुनाव हराकर जिले के पहले नेता के रूप में जिले का सांसद बनने का गौरव प्राप्त किया। उस समय 87 हजार की लीड बड़ी मानी जाती थी और उसी समय देश में मुरारजी देसाई के रूप में देश को पहला गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री मिला था।

कांग्रेस के बाहरी नेताओं ने क्षेत्र का किया दोहन

1952 से लगातार 1991 तक कांग्रेस को लोकसभा चुनाव लड़वाने के लिए बैतूल जिले से कोई योग्य और दमदार उम्मीदवार दिखाई नहीं दिया क्योंकि कांग्रेस के स्थानीय नेताओं की कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व तक इतनी पहुंच नहीं थी कि वे लोकसभा टिकट ले आए। और उस समय के कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने भी बैतूल जिले को चारागृह मानते हुए ऐसे-ऐसे बाहरी नेताओं को टिकट दी जिन्हें बैतूल का भूगोल और इतिहास दोनों नहीं मालूम था। वहीं ऐसे बाहरी नेता तत्कालिन विपक्ष दल जनसंघ और जनता पार्टी की कमजोर संगठन क्षमता के चलते चुनाव जीतते गए और कांग्रेस हाईकमान यहां ऐसे उम्मीदवार एडजस्ट करता रहा जिनकी देश में कहीं राजनैतिक जमीन नहीं थी। इनमें नागपुर के भीकूलाल चांडक, नागपुर के ही एनकेपी साल्वे, दिल्ली में रह रहे असलम शेर खान और भोपाल के गुफराने आजम शामिल थे।

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कांग्रेस में नहीं थी स्थानीय योग्य उम्मीदवारों की कमी

इन दौरान 1952 से 1998 तक ऐसा नहीं है कि जिले में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की कमी थी लेकिन उन्हें लोकसभा की टिकट प्राप्त करने में कभी सफलता नहीं मिली। इस दौर में पूर्व विधायकों में दीपचंद गोठी, बालकृष्ण पटेल मुलताई, राधाकृष्ण गर्ग, रामजी महाजन, विनोद डागा के अलावा वरिष्ठ कांग्रेस नेता बिरदीचंद गोठी, हरकचंद डागा, घनश्याम तिवारी, रामगोपाल अग्रवाल ऐसे नाम रहे हैं जिनकी पूरे जिले में पकड़ रही लेकिन लोकसभा चुनाव लड़वाने के लिए कांग्रेस ने कभी अवसर नहीं दिया। और जब 1998 के बाद कांग्रेस ने पहली बार स्थानीय नेता डॉ. अशोक साबले को जब लोकसभा चुनाव लड़वाया तब तक कांग्रेस इस क्षेत्र में इतनी कमजोर हो गई थी कि फिर जीत का अवसर 2023 तक नहीं मिल पाया है।

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