जिला अस्पताल में सफल पांचवा नेत्रदान
Betul News – बैतूल – जिंदगी की गाड़ी का पहिया तो सभी खींचते हैं लेकिन चुनिंदा होते हैं वह इंसान जो इतिहास बनाया करते हैं। आज हम एक ऐसी ही शख्सियत श्रीमती इंदूमती जैन की बात कर रहे हैं जो कि भले ही अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन उसकी आंखें जिंदा रहेंगी और वह इन आंखों से मरणोपरांत भी दुनिया देखेंगी। श्रीमती जैन ने अपनी आंखें दान कर दी है। इन आंखों को भोपाल ले जाया गया।
आज सुबह महावीर मिष्ठान भण्डार के संचालक राजेश, भरत जैन की माताजी श्रीमती इंदूमती पति स्व. जगदीशचंद जैन (84) का निधन हो गया था। मृत्यु पूर्व उन्होंने अपने परिवार में नेत्रदान की इच्छा जाहिर की थी। उनके निधन के बाद परिजनों ने रेडक्रास सोसायटी के अध्यक्ष डॉ. अरूण जयसिंहपुरे से संपर्क किया और अपनी माताजी की इच्छा से अगवत कराया। इसके पश्चात नेत्रदान की प्रक्रिया संपन्न कराने के लिए उनकी पार्थिवदेह जिला अस्पताल लायी गई और आपरेशन कर उनकी दोनों आंखें निकाली गई और इन्हें सुरक्षित रूप से हमीदिया भोपाल के आई बैंक भेजा गया।
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नेत्रदान की प्रक्रिया संपन्न करने वाले नेत्र विशेषज्ञ डॉक्टर वरुन उपाध्याय ने बताया कि नेत्रदान के लिए सबसे पहले आईबाल और कार्निया निकाला गया। इसके साथ ही ब्लड सेम्पल लिया गया और कार्निया सेम्पल भी लिया। इन्हें भोपाल भेजा गया है। आंखें निकालने के लिए किए गए आपरेशन के दौरान नेत्र विशेषज्ञ डॉ. विनोद बर्डे, डॉ. साबिया, डॉ. अंजुम, गीता सिस्टर, परते सिस्टर सहित अन्य स्टाफ मौजूद था जिनके सहयोग से आपरेशन संपन्न कराया गया।
डॉ. उपाध्याय ने बताया कि श्रीमती इंदूमती जैन की कार्निया की कंडीशन बेहतर थी और जिनकी आंखों की रोशनी चली जाती है उनके यह काम आ सकती है।
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रेडक्रास सोसायटी के डॉ. अरूण जयसिंहपुरे ने बताया कि श्रीमती इंदूमती जैन का नेत्रदान हुआ है। यह पांचवा नेत्रदान था। इसके पहले एकनाथ कवडक़र, ज्ञानराव गाड़वे, शेषराव पंवार सहित एक अन्य शामिल है। उन्होंने बताया कि रेडक्रास सोसायटी के चेयरमेन कलेक्टर के मार्गदर्शन में सोसायटी के द्वारा अंगदान और देहदान के लिए सतत जनजाग्रति अभियान चलाया जा रहा है। इसी के चलते अभी तक अंगदान के 550 फार्म भरे गए हैं और देहदान 250 फार्म भरे गए हैं जिन्होंने मरोणोपरांत देहदान की इच्छा व्यक्त की है। उन्होंने बताया कि जागरूकता अभियान के चलते देहदान और अंगदान की इच्छा व्यक्त करने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
समाजसेवी सतीष पारीख ने बताया कि राजेश और भरत जैन की माताजी श्रीमती इंदूमती जैन काफी धार्मिक प्रवृत्ति की थी और दानी प्रवृत्ति की भी थीं। हमेशा दानपुण्य के कार्यों में अग्रणी रहती थीं। उन्होंने अपने जीवित रहते नेत्रदान की इच्छा व्यक्त की थी। उनकी इच्छा पूरी करने के लिए उनके परिजनों ने निधन के तत्काल पश्चात ही उनके नेत्रदान की प्रक्रिया करवाई। उनके निधन पर परिजनों, स्वजातीय बंधुओं, रिश्तेदारों और शुभचिंतकों ने जहां शोक संवेदनाएं व्यक्त की है वहीं नेत्रदान को लेकर एक पुण्य कार्य भी बताया है। इससे साफ है कि श्रीमती इंदूमती जैन भले ही अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन उनकी आंखें जिंदा रहेंगी।
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