नई दिल्ली: भारतीय क्रिकेट टीम की नीली जर्सी सिर्फ खेल का प्रतीक नहीं रही है, बल्कि यह हमेशा से बड़े-बड़े ब्रांड्स के लिए पहचान और विज्ञापन का सबसे असरदार माध्यम भी रही है। पिछले तीन दशकों में टीम इंडिया की जर्सी पर कई नाम चमके हैं, जिन्होंने न केवल क्रिकेट बल्कि अपने-अपने बिजनेस की दिशा भी बदल दी। हालांकि, अब भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) और मौजूदा जर्सी स्पॉन्सर ड्रीम-11 (Dream11) की साझेदारी अचानक खत्म हो गई है। बीसीसीआई सचिव देवाजीत सैकिया ने इसकी पुष्टि की है। इसका नतीजा यह होगा कि आगामी एशिया कप में भारतीय टीम ड्रीम-11 के लोगो के बिना मैदान में उतरेगी। बीसीसीआई अब नए स्पॉन्सर के लिए टेंडर जारी करने की तैयारी कर रहा है।
दिलचस्प बात यह है कि भारतीय टीम के कई बड़े स्पॉन्सर किसी न किसी मुश्किल का सामना करते रहे हैं। सहारा पर कानूनी विवाद, बायजू पर आर्थिक दबाव और अब ड्रीम-11 पर गेमिंग कानून का असर। ऐसा लगता है मानो टीम इंडिया की जर्सी के साथ ब्रांड संकट जुड़ा हुआ हो।आइए जानते हैं कि ड्रीम 11 से पहले कौन-सी कंपनियां टीम इंडिया की जर्सी स्पॉन्सर रही हैं…
शुरुआत ITC से
1990 के दशक की शुरुआत में जब भारतीय क्रिकेट व्यावसायिक रूप से तेजी से बढ़ने लगा, तब आईटीसी लिमिटेड पहला बड़ा नाम था जिसने टीम इंडिया की जर्सी पर जगह बनाई। 1993 से लेकर 2001 तक विल्स (Wills) और आईटीसी होटल्स (ITC Hotels) जैसे ब्रांड्स भारतीय खिलाड़ियों की जर्सी पर दिखाई दिए। यह वह दौर था जब क्रिकेट और विज्ञापन की साझेदारी ने अपनी असली उड़ान भरनी शुरू की।
कंपनी की मौजूदा स्थिति: आईटीसी का मार्केट कैप पांच लाख करोड़ रुपये है। जून 2025 को समाप्त तिमाही में आईटीसी का शुद्ध लाभ तीन प्रतिशत बढ़कर 5244.20 करोड़ रुपये हो गया, जबकि जून 2024 को समाप्त पिछली तिमाही के दौरान यह 5091.59 करोड़ रुपये था। जून 2025 को समाप्त तिमाही में बिक्री 20.98 फीसद बढ़कर 21372.93 करोड़ रुपये हो गई, जबकि जून 2024 को समाप्त पिछली तिमाही के दौरान यह 17666.78 करोड़ रुपये थी। कोरोना काल के बाद कंपनी को नई-नई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
सहारा का स्वर्णिम युग
2002 से 2013 तक टीम इंडिया की जर्सी पर सबसे लंबे समय तक सहारा इंडिया (Sahara India) का लोगो दिखाई दिया। यह वह समय था जब भारतीय क्रिकेट ने अपने सुनहरे अध्याय लिखे। टी20 विश्वकप 2007 और 2011 का वनडे विश्व कप इसी दौरान आया। सहारा और टीम इंडिया का यह रिश्ता लगभग एक दशक तक अटूट रहा और इसने क्रिकेट को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
कंपनी की मौजूदा स्थिति: सहारा प्रमुख सुब्रत रॉय के जेल जाने के बाद से कंपनी बेहद बुरे दौर से गुजरी। आज भी कंपनी तमाम कानूनी पचड़ों में फंसी हुई है। सुब्रत रॉय की मृत्यु के बाद, सहारा समूह की वित्तीय स्थिति बेहद अनिश्चित बनी हुई है, खासकर सेबी के साथ लंबे समय से चल रहे कानूनी विवादों और निवेशकों के पैसे वापस करने के मामले में. सहारा की गैर-वित्तीय संपत्तियों को सहारा समूह के नेतृत्व द्वारा बनाए रखने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन समूह के भविष्य पर अनिश्चितता छाई हुई है। केंद्र सरकार ने सहारा की सहकारी समितियों में फंसे जमाकर्ताओं के लिए धन वापसी की प्रक्रिया शुरू की है।
डिजिटल दौर की एंट्री
2014 में बारी आई स्टार इंडिया (Star India) की। इस स्पॉन्सरशिप के साथ क्रिकेट और डिजिटल ब्रॉडकास्टिंग की जुगलबंदी ने नया इतिहास रचा। टीवी और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के साथ स्टार ने क्रिकेट को घर-घर तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई। स्टार इंडिया 2014 से 2017 तक भारतीय क्रिकेट टीम की जर्सी प्रायोजक रही। भारतीय मीडिया समूह ने कथित तौर पर प्रत्येक द्विपक्षीय मैच के लिए 1.92 करोड़ रुपये और एक आईसीसी मैच के लिए 61 लाख रुपये का भुगतान किया था।
कंपनी की मौजूदा स्थिति: स्टार इंडिया की स्थिति अच्छी है और वह अभी भी प्रमुख मीडिया समूहों में बनी हुई है।
मोबाइल ब्रांड्स की जंग
इसके बाद 2017 में ओप्पो (Oppo) सामने आया। 2019 तक टीम इंडिया की जर्सी पर यह मोबाइल ब्रांड दिखा। स्मार्टफोन इंडस्ट्री में प्रतिस्पर्धा के बीच ओप्पो ने क्रिकेट को अपने प्रचार का सबसे मजबूत जरिया बनाया। ओप्पो ने 2017 से 2019 तक भारतीय टीम के जर्सी स्पॉन्सर अधिकार अपने नाम किया था। कथित तौर पर ओप्पो ने 2017 में प्रायोजन के लिए वीवो मोबाइल्स से अधिक बोली लगाई। उसने पांच साल के लिए 1,079 करोड़ रुपये में करार किया था। कंपनी ने बाद में बाजार छोड़ने और उसी कीमत पर अधिकार बायजू को हस्तांतरित करने का निर्णय लिया। कंपनी का मानना था कि 2017 में टीम इंडिया की जर्सी की रकम बहुत अधिक थी जो की वर्तमान में कंपनी के पैमाने पर खरी नहीं उतर रही है।
कंपनी की मौजूदा स्थिति: ओप्पो विश्व में स्मार्टफोन शिपमेंट के मामलों में लगातार चौथे स्थान पर बनी हुई है, लेकिन उसके सामने वित्तीय दबाव, कानूनी चुनौतियां और परिचालन जोखिम बाधाएं भी हैं। ओप्पो मोबाइल्स इंडिया के ऑडिट में FY24 के लिए 3,551 करोड़ रुपये का नेगेटिव नेट वर्थ रिपोर्ट किया गया है। इससे कंपनी की दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। ओप्पो ने अपने चिप डिजाइन यूनिट जेकू को अचानक बंद कर दिया। हाल ही में एप्पल ने अपनी एक्स-इंजीनियर पर और ओप्पो पर आरोप लगाए हैं कि उन्होंने एप्पल वॉच की संवेदनशील तकनीकी जानकारी चोरी की, जिसे ओप्पो ने पूरी तरह से खारिज किया और कोई संलिप्तता न होने का दावा किया था।
शिक्षा की ताकत: बायजू
2019 से 2023 तक बायजू (Byju’s) ने भारतीय टीम की जर्सी को अपनाया। ऑनलाइन एजुकेशन स्टार्टअप होने के बावजूद इस ब्रांड ने विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाई। हालांकि आर्थिक चुनौतियों और विवादों की वजह से इसका सफर लंबा नहीं चल सका। 2019 में बायजू ने टीम के पिछले जर्सी स्पॉन्सर ओप्पो से सभी जिम्मेदारियां ले लीं। बायजू ने जून 2022 में अनुमानित 35 मिलियन अमेरिकी डॉलर में बोर्ड के साथ अपने जर्सी प्रायोजन सौदे को नवंबर 2023 तक बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की थी। बायजू ने बीसीसीआई के साथ अपने अनुबंध को खत्म करने का अनुरोध किया। इस पर बोर्ड ने कंपनी को मार्च 2023 तक साथ बने रहने के लिए कहा था। दोनों के बीच सहमति हुई और बायजू मार्च तक टीम का जर्सी स्पॉन्सर था। इसके बाद बोर्ड ने इस अधिकार को ड्रीम 11 के हाथों में दे दिया था।
कंपनी की मौजूदा स्थिति: मार्च 2022 बायजू का वैल्युएशन 22 अरब डॉलर था जो कंपनी के हालिया विवादों के कारण घटकर आठ अरब डॉलर रह गया है। बायजू का कारोबार एक समय में 22 बिलियन यूएस डॉलर के मूल्यांकन पर था, लेकिन अब इसका मूल्यांकन केवल दो-तीन बिलियन यूएस डॉलर के बीच आ गया है। यानी लगभग 85–90 फीसद की भारी कमी हुई है। वित्तीय वर्ष 2022 में कंपनी ने 8,245 करोड़ रुपये का शुद्ध घाटा दर्ज किया। भारी घाटों और नकदी संकट के चलते कंपनी ने सैकड़ों कर्मचारियों को रोजगार से हटाया। कई स्थानों पर कर्मचारियों का वेतन समय पर नहीं भेजा गया, और कुछ को वेतन जारी करने में भी मुश्किलें आईं। एक समय में देश की सबसे चमकदार एजु-टेक सफलता बायजू, आज कानूनी उलझनों, भारी घाटे, कंपनी के ढांचे में संकट और गवर्नेंस में कमजोरियों का सामना कर रही है।
जुलाई 2023 से ड्रीम-11 (Dream11) टीम इंडिया का नया स्पॉन्सर बना। 358 करोड़ रुपये के तीन साल के करार के साथ इसने बायजू की जगह ली। ड्रीम-11 ने भारतीय क्रिकेट में फैंटेसी गेमिंग को जोड़कर एक नया अध्याय खोला। हालांकि, यह करार समय से पहले ही खत्म हो गया है। हाल ही में पारित 'ऑनलाइन गेमिंग बिल 2025' के कारण कंपनी को अपने संचालन में बड़ी बाधा का सामना करना पड़ा और उसने अनुबंध से बाहर निकलने का फैसला किया। ड्रीम-11 के इस कदम से बीसीसीआई असमंजस की स्थिति में है। एशिया कप जैसे बड़े टूर्नामेंट करीब हैं और टीम इंडिया के पास इस समय कोई आधिकारिक प्रमुख प्रायोजक नहीं है। ऐसे में बोर्ड को तुरंत नया स्पॉन्सर ढूंढना होगा। यह आसान नहीं होगा क्योंकि इतने कम समय में बड़े ब्रांड को जोड़ना चुनौतीपूर्ण है।
कंपनी की मौजूदा स्थिति: भारत में हाल ही में पारित 'ऑनलाइन गेमिंग प्रमोशन और रेगुलेशन बिल, 2025' के तहत सभी रियल-मनी आधारित गेम्स पर रोक लगाई गई है। इस कानून ने ड्रीम-11 के मुख्य व्यवसाय को सीधा चोट पहुंचाई, क्योंकि फैंटेसी स्पोर्ट्स का 90 फीसद से अधिक राजस्व इसी मॉडल से आता था। ड्रीम-11 ने अपने सभी पेड कॉन्टेस्ट पूरी तरह बंद कर दिए हैं और अब वह पूरी तरह फ्री-टू-प्ले ऑनलाइन सोशल गेम्स मॉडल की ओर बढ़ रही है। इससे कंपनी पर आर्थिक संकट के बादल भी मंडरा रहे हैं।