Bakri Palan – 500 लीटर दूध देने वाली इस नस्ल की दूसरे देशों में है डिमांड 

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भारतीय नस्ल की इस बकरी की हैं कई खासियतें 

Bakri Palanजमनापारी नस्ल उत्तर प्रदेश के इटावा शहर से जुड़ी हुई है, और इस नस्ल के बकरों की संख्या को बढ़ाने के लिए सीआईआरजी 43 साल से काम कर रहा है। जमनापारी नस्ल के बकरे-बकरी किसानों के बीच आर्टिफिशल इंसेमिनेशन का प्रयोग हो रहा है और चार-पांच साल में लगभग चार हजार बकरे इस नस्ल से किसानों को दिए गए हैं। इन बकरों की खूबसूरती उनकी आंखों और नाक के बालों में होती है, और यह विशेषता इस नस्ल के बकरे को अनूठा बनाती है। इनकी ऊंचाई और धारावाहिकता के कारण, ये नस्ल विदेशों में भी चर्चा में हैं, और दूसरे देशों की सरकारें भी भारत से इन बकरों की मांग कर रही हैं। सीआईआरजी के अनुसंधानकर्ता बताते हैं कि जमनापारी बकरों को बेहतर बनाने के लिए इस्तेमाल देश के साथ ही विदेशों में भी हो रहा है।

थ्री इन वन नस्ल | Bakri Palan

यह बकरियों में एक थ्री इन वन नस्ल है, जिसमें जमनापारी दूध, मांस, और अच्छी प्रजनन क्षमता के मामले में अन्य नस्लों से आगे है। इस नस्ल के बकरे नेपाल, भूटान, इंडोनेशिया, फिलीपींस, मलेशिया जैसे देशों में भेजे गए हैं। इनके साथ, इस नस्ल के खास बकरे सामान्य से ज्यादा ऊंचे होते हैं और इनकी सफेद रंग में विशेषता होती है। इनकी खूबसूरती और वृद्धि के लिए सीआईआरजी ने कई उपाय अपनाए हैं, जिसके लिए हाल ही में संस्थान को पुरस्कार भी मिला था।

दूसरे देशों में बढ़ रही डिमांड 

दूसरे देशों में, भारतीय जमनापरी बकरीयों की मांग उनके बकरियों की नस्ल को बेहतर बनाने के लिए की जाती है। यहां की जमनापरी बकरी दूध प्रदान करती है, रोजाना चार से पांच लीटर तक। इसका दुग्धकाल 175 से 200 दिन का होता है, और एक बार में वे 500 लीटर तक दूध दे सकती हैं। इस नस्ल में दो बच्चे देने की दर 50 फीसदी तक होती है। इनका वजन दैनिक 120 से 125 ग्राम तक बढ़ता है। उनकी शारीरिक बनावट और सफेद रंग की वजह से उनकी खूबसूरती का कोई मुकाबला नहीं होता है। इसीलिए ईद जैसे त्योहारों पर भी इनकी खास मांग बनी रहती है।

 ये है इस नस्ल की खासियत | Bakri Palan 

जमनापरी बकरी चकरनगर और गढ़पुरा इलाकों में विशेष रूप से पायी जाती है, जो कि यूपी के इटावा में स्थित हैं। यह बकरियों के लिए शानदार चराई की सुविधा प्रदान करता है और इसी कारण यह नस्ल विशेष है। इसकी वितरण यूपी के अलावा मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, और पश्चिम बंगाल में भी होती है।

इस बकरी का आकार बड़ा होता है और इसके कान नीचे की ओर लटके होते हैं।

इसका रंग सामान्यतः सफेद होता है, लेकिन कभी-कभी कान और गले पर लाल धारियां भी पाई जाती हैं।

इसकी नाक उभरी होती है और इसके चारों ओर बालों के गुच्छे होते हैं।

बकरे और बकरी दोनों के पीछे के पैरों पर लंबे बाल होते हैं।

इस नस्ल में बकरे और बकरियों दोनों के सींग पाए जाते हैं।

एक बकरे का वजन 45 किलो तक होता है, जबकि बकरी का वजन 38 किलो तक होता है।

बकरा 90 से 100 सेमी ऊंचा होता है जबकि बकरी 70 से 80 सेमी ऊंची होती है।

जमनापुरी बकरियां 194 दिन के दूधावसर में औसतन 200 लीटर तक दूध देती हैं।

एक साल में जमनापुरी बकरी का वजन 21 से 26 किलो तक हो जाता है।

जमनापुरी बकरी का बच्चा 4 किलो तक का होता है।

20 से 25 महीने की उम्र पर यह बकरी अपना पहला बच्चा देती है।

इनका उपयोग दूध के अलावा मीट के लिए भी होता है।

सीआईआरजी, मथुरा जमनापुरी बकरी पर अनुसंधान करता है और हाल ही में इसके लिए संस्थान को पुरस्कार भी मिला।

भारत में जमनापुरी बकरियों की कुल संख्या 25.56 लाख है।

प्योर जमनापुरी ब्रीड बकरियों की संख्या 11.78 लाख है।

Source – Internet