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आगरा: चंबल का जलस्तर घटा, मगर खतरा बरकरार, किसानों की फसलें बर्बाद

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आगरा: मध्य प्रदेश और राजस्थान में हाल ही में हुई भारी बारिश के कारण चंबल नदी का जलस्तर शुक्रवार को कुछ कम हुआ, लेकिन नदी अभी भी खतरे के निशान से ऊपर बह रही है। तटवर्ती इलाकों के दर्जनों गांव जलमग्न हो गए हैं, जिससे किसानों की लाखों रुपये की फसलें बर्बाद हो चुकी हैं। घरों में पानी भर जाने के कारण ग्रामीणों को ऊंचे टीलों पर अस्थाई आश्रय लेना पड़ा है। नदी का पानी उतरने के बाद रास्तों में गंदगी और खाने-पीने की वस्तुओं की कमी जैसी समस्याएं सामने आई हैं। प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग प्रभावित क्षेत्रों में राहत कार्यों में जुटा है, जिसमें इंफेक्शन से बचाव और राहत सामग्री वितरण शामिल है।
  
चार दिन से बढ़ रहा था जलस्तर

पिछले चार दिनों से चंबल नदी का जलस्तर लगातार बढ़ रहा था। गुरुवार को नदी का पानी खतरे के निशान से 3.7 मीटर ऊपर पहुंच गया था। खेड़ा राठौड़, उमरैठा पुरा समेत 10 से अधिक गांव जलमग्न हो गए। बाढ़ की आशंका को देखते हुए प्रशासन ने राहत टीमें अलर्ट मोड पर रखीं। शुक्रवार को जलस्तर 133.70 मीटर से कुछ नीचे आया, जिससे ग्रामीणों ने राहत की सांस ली। हालांकि, कई ग्रामीणों ने वन विभाग के जंगलों में टीलों पर अस्थाई आवास बनाए हैं। प्रशासन ने ग्रामीणों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने के लिए मोटरबोट की व्यवस्था की थी।

स्वास्थ्य विभाग की सक्रियता

मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. अरुण प्रकाश श्रीवास्तव ने बताया कि प्रभावित क्षेत्रों में 10 स्वास्थ्य टीमें तैनात की गई हैं। इंफेक्शन से बचाव के लिए दवाइयां और राहत सामग्री उपलब्ध कराई जा रही है। 108 एंबुलेंस सेवा भी सक्रिय है। गंदगी, पेयजल, और खाद्य सामग्री की कमी जैसी समस्याओं से निपटने के लिए व्यवस्थाएं की जा रही हैं। बच्चों के लिए ओआरएस और स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था की गई है। इसके अलावा, ब्लीचिंग पाउडर और एंटी-लार्वा छिड़काव कर इंफेक्शन को रोकने के प्रयास किए जा रहे हैं।

किसानों की फसलें बर्बाद

उमरैठा के निवासी रामबाबू ने बताया कि नदी का जलस्तर कम होने के बावजूद आवागमन के लिए रास्तों की समस्या बनी हुई है। पशुओं के लिए बांधने की जगह भी नहीं बची है। लाखों रुपये की फसलें पूरी तरह बर्बाद हो चुकी हैं, और खाद-बीज भी नष्ट हो गए हैं। उन्होंने बताया कि 2021 और 2022 में भी ऐसी ही स्थिति थी, लेकिन सरकार से कोई मुआवजा नहीं मिला। ग्रामीण छोटेलाल ने कहा कि जंगलों के टीलों पर अस्थाई मकान बनाकर रह रहे हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि यदि सरकार टीलों पर स्थाई मकान उपलब्ध कराए, तो ऐसी समस्याओं से स्थाई निजात मिल सकती है।

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