जाने कैसे किसान कम समय में पा सकते हैं अधिक मुनाफा
Aalu Ki Kheti – भारत में, चावल, गेहूं, और गन्ना के बाद, आलू की खेती सबसे अधिक की जाती है। आलू में 80 से 82 प्रतिशत तक पानी और 14 प्रतिशत स्टार्च होता है। यह एक ऐसी सब्जी है जिसे कई दिनों तक स्टोर करके रखा जा सकता है। इसके साथ ही, आलू से कई प्रकार के व्यंजन बनाए जा सकते हैं। शायद इसी कारण इसे “सब्जियों का राजा” भी कहा जाता है।
हवा में उगाए जा रहे आलू | Aalu Ki Kheti
हमेशा से ही आलू ज़मीन के नीचे उगाए जाते हैं, लेकिन एक प्रौद्योगिकी संस्थान में नई तकनीक का उपयोग करके आलू को मिट्टी के बजाय हवा में उगाया जा रहा है। इस संस्थान के वैज्ञानिकों ने एयरोपोनिक तकनीक का उपयोग करके उच्च गुणवत्ता के बीज की नई प्रजातियों को किसानों तक पहुंचाने के लिए काम किया है। इससे किसानों की आय में दोगुनी वृद्धि हो सकती है।
आलू प्रौद्योगिकी संस्थान शामगढ़ में अब ऐसी तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है जिससे आलू मिट्टी के बजाय हवा में उगाए जा रहे हैं। संस्थान के वैज्ञानिकों ने किसानों को हाई क्वालिटी के बीज पहुंचाने के लिए एयरोपोनिक तकनीक का उपयोग करके आलू की नई प्रकार की किस्में उगाई हैं।
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आलू की नई किस्म
हाल ही में, शामगढ़ करनाल के आलू प्रौद्योगिकी संस्थान ने एक नई किस्म के आलू, जिसे कुफरी कहा जा रहा है, का निर्माण किया है। इस नई किस्म की आलू की उत्पत्ति किसानों के लिए एक बड़ी सौगात है। यह किसानों की आय को दोगुना करने के साथ-साथ लोगों को पौष्टिक आलू का भोजन करने का भी अवसर प्रदान करेगा। इस नई किस्म के आलू को जल्दी ही किसानों के लिए उपलब्ध कराया जाएगा।
इस तकनीक से हो रही खेती | Aalu Ki Kheti
एयरोपोनिक तकनीक से उगाए जा रहे इस आलू की विशेषता यह है कि इसके उगाने के लिए मिट्टी और ज़मीन की आवश्यकता नहीं है। किसान इस नई तकनीक का उपयोग करके आलू की खेती करने के लिए केंद्र पहुँच रहे हैं। नामक आलू की इस नई वैराइटी के बीज अभी तक किसानों के पास पहुँचा नहीं है। इस समय, इस वैराइटी के आलू सिर्फ शामगढ़ के आलू प्रौद्योगिकी संस्थान में उगाए जा रहे हैं।
जब इनके बीज मिनी ट्यूबर्स में परिणामित हो जाएंगे, तब इन्हें किसानों को उपलब्ध किया जाएगा। आलू प्रौद्योगिकी संस्थान के कृषि वैज्ञानिकों ने बताया है कि इस नई किस्म के आलू के करीब 5 से 6 लाख मिनी ट्यूबर्स बनाने का लक्ष्य है, क्योंकि इस वैराइटी की बाजार में काफी मांग है। इस किस्म की खासियत यह है कि ये पिंक कलर के हैं और इसका उत्पादन अधिक मात्रा में होता है। आगामी समय में, इस वैराइटी की मांग बढ़ने के साथ-साथ किसानों को इसके लिए अच्छा रेट मिलेगा।
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस आलू की किस्म की उत्पादकता चार से पाँच गुना अधिक है। इसे उगाने के लिए एयरोपोनिक ग्रोबॉक्स के अंदर, माइक्रो प्लांट को ट्रांसप्लांट किया जाता है और न्यूट्रेंट सॉल्यूशन के माध्यम से पोषित किया जाता है। इसमें मिट्टी और कोकोपिट का उपयोग नहीं होता, हार्डनिंग के बाद ट्रांसप्लांट किया जाता है। इस वैराइटी की विशेषता यह है कि यह 60 से 65 दिनों में तैयार हो जाती है।
आलू की ख़ास वैरायटी
आलू की “कुफरी” किस्म पुखंराज वैराइटी के आलुओं को भी टक्कर दे सकती है। कम समय में ज्यादा उत्पादकता और अधिक मुनाफा कमाने के लिए आलू की “कुफरी उदय” वैराइटी “New Variety Of Potato” किसानों के लिए बहुत लाभकारी साबित हो सकती है। आलू प्रौद्योगिकी संस्थान के वैज्ञानिकों ने बताया है कि इस नई किस्म के बीज लेने के लिए यूपी, मध्यप्रदेश, राजस्थान, और पंजाब जैसे राज्यों से किसान आ रहे हैं।
लेकिन संस्थान की प्राथमिकता हरियाणा के किसानों के लिए है, क्योंकि यह विशेष किस्म “New Variety Of Potato” उन्हीं के लिए उगाई गई है, ताकि हरियाणा के किसानों को हाई क्वालिटी के बीज मिल सके। एयरोपोनिक तकनीक से इस नई वैराइटी के आलू का ट्रायल किया जा रहा है, जिससे काफी अच्छे परिणाम मिल रहे हैं। इनमें कुफरी उदय और कुफरी पुष्कर किस्में फातियाबाद, सिरसा और हिसार के किसानों को काफी पसंद आ रही हैं।
वैज्ञानिकों का कहना है कि संस्थान में कुफरी चिप सोना-1 और कुफरी प्राई सोना जैसी आलू की किस्मों के मिनी ट्यूबर्स भी जनवरी-फरवरी तक उपलब्ध हो जाएंगे। इनका रंग काफी आकर्षक है और कम समय में ज्यादा पैदावार “” होती है। कुफरी प्राई सोना वैराइटी के आलुओं का उपयोग चिप्स बनाने में होता है। इसके अलावा कुफरी संगम, कुफरी मोहन और कुफरी पुष्कर के बीज संस्थान में उपलब्ध हैं। किसान केंद्र जाकर या फिर ऑनलाइन भी इन बीजों को खरीद सकते हैं।