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राजस्थान का ऐसा मंदिर, जिसे औरंगज़ेब भी मिटा नहीं पाया… आज भी गूंजता है ‘हर हर शंभू’!

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सीकर. सीकर जिले में स्थित हर्ष पर्वत को राजस्थान का केदारनाथ कहा जाता है. यहां भगवान शिव की हजारों साल पुरानी मूर्ति स्थापित है. चारों ओर पहाड़ों से घिरे इस पर्वत की ऊंचाई 3100 फीट है. इस ऊंचाई पर स्थित शिव मंदिर की यात्रा भक्तों के लिए बेहद खास होती है. खड़ी चढ़ाई, गहरी घाटियां और ऊंचाई पर भगवान शिव का चमत्कारी मंदिर लोगों को केदारनाथ जैसा अनुभव देता है. पूजा के साथ-साथ यह स्थान पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. खासकर बारिश के मौसम में जब चारों ओर बादल मंडराते हैं, तो यह पर्वत और भी अधिक सुंदर दिखाई देता है.

 

हर्ष पर्वत, खाटूश्यामजी से मात्र 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इसलिए खाटू के दर्शन के बाद श्रद्धालु आसानी से यहां पहुंच सकते हैं. माउंट आबू के बाद इसे राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा पर्वत माना जाता है. यहां स्थित शिव मंदिर को मुगल शासक औरंगजेब की सेना ने तहस-नहस कर दिया था, जिसके प्रमाण आज भी यहां देखे जा सकते हैं. इस पर्वत पर भगवान गणेश की विश्व की एकमात्र अर्द्धनारीश्वर रूप वाली मूर्ति भी है, जिसे गणेशी अवतार कहा जाता है. इसके अलावा यहां सफेद शिवलिंग, पंचमुखी शिवलिंग और हजार साल से भी ज्यादा पुरानी मूर्तियां मौजूद हैं.

प्राकृतिक नजारों और आध्यात्म का संगम है हर्षनाथ मंदिर
हर्ष पर्वत की ऊंचाई पर स्थापित पवन चक्कियां दूर से बेहद आकर्षक दिखाई देती हैं. जैसे-जैसे इनके पास पहुंचते हैं, दृश्य और भी सुंदर होता चला जाता है. हर्षनाथ मंदिर प्रकृति की गोद में बसा एक शांत और दिव्य स्थल है. 3100 फीट की ऊंचाई से सूर्योदय और सूर्यास्त देखना अपने आप में एक अविस्मरणीय अनुभव होता है. यहां की लहरदार सड़कें लॉन्ग ड्राइव के लिए बिल्कुल उपयुक्त हैं. बरसात के मौसम में यहां की हरियाली और नमी इस स्थान को और भी अधिक आकर्षक बना देती है.

 

सावन में उमड़ती है भक्तों की भीड़
सावन के महीने में इस स्थान पर श्रद्धालुओं की संख्या में काफी वृद्धि होती है. देश के अलग-अलग हिस्सों जैसे दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और हरियाणा से लोग यहां शिव दर्शन को पहुंचते हैं. हर्ष पर्वत राजस्थान के प्रमुख धार्मिक और पर्यटन स्थलों में से एक बन चुका है. प्राचीन मंदिर, विशाल पवन चक्कियां, गहरी घाटियां और प्रकृति की सुंदरता यहां के अनुभव को अद्वितीय बनाती हैं. यही कारण है कि हर साल हजारों की संख्या में लोग यहां आकर आध्यात्म और प्रकृति दोनों का आनंद लेते हैं.

 

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