मिथिलांचल में चौरचन पर्व अपने आप में बेहद खास और महत्वपूर्ण माना जाता है. इस पर विशेष जानकारी देते हुए कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर ज्योतिष विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. कुणाल कुमार झा बताते हैं कि मिथिला धाम में इस पर्व का विशेष महत्व है. दरभंगा राजघराने से इसकी मान्यता जुड़ी है. आइए जानते हैं.
चौरचन पर्व की उत्पत्ति और महत्व
चतुर्थी चंद्र का अन्य माह में दर्शन दोष का कारक का योग बनता है. मिथिला धाम में महेश ठक्कुर, जो दरभंगा के राज परिवार के मूल व्यक्ति थे. उनके पुत्र हेमंत तुंग के कहने से चौठ यानी चौरचन अर्थात चौथ चंद्र का पूजन करने का विधान मिथिलांचल में चलता आ रहा है. यह व्रत गणेश चतुर्थी से प्रसिद्ध है और भाद्र शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है. चौरचन पर्व में खासकर अस्त के समय में चौठ तिथि का पड़ना आवश्यक होता है.
चौरचन पर्व में चंद्र पूजन का महत्व:
चौरचन पर्व में चंद्र दर्शन और पूजन का विशेष महत्व है. इसमें भाद्र शुक्ल रोहिणी चतुर्थी को चंद्र पूजन करने का विधान है. फल या दही लेकर चंद्रमा का दर्शन किया जाता है और प्रार्थना की जाती है.
चौरचन पर्व का मिथिलांचल में महत्व
चौरचन मिथिलांचल में बहुत महत्वपूर्ण पर्व है. इसी दिन से हर पूजा, व्रत, त्योहार और पर्व का शुभारंभ होता है. यह पर्व मिथिलांचल की संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे लोग आज भी निभा रहे हैं और यह बहुत खास भी है. दरभंगा राजघराने से इस पर्व की मान्यता जुड़ी है. जिन्होंने ग्रह दोष को भी बदल डाला. इस प्रकार, चौरचन पर्व मिथिलांचल में एक विशेष और महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें चंद्र पूजन का विशेष महत्व है. यह पर्व विभिन्न व्रत और त्योहारों के शुभारंभ का प्रतीक है. दरभंगा राज परिवार में कई ऐसे विद्वान हुए हैं, जिन्होंने समाज के लिए इतिहास रचा है.