
7 बार जनता ने जताया भरोसा
Political News – बैतूल – मुलताई विधानसभा सीट के रूप में पहली बार विधानसभा चुनाव 1957 में हुआ। इसके पहले इसी का स्वरूप वैसा नहीं था जैसा 1957 में बना। इसके बाद 1962 के विधानसभा चुनाव में जिले में 5 विधानसभाएं पूर्ण अस्तित्व में आई जिनमें बैतूल, मुलताई, मासोद, भैंसदेही और घोड़ाडोंगरी शामिल थी। और यह स्थिति 1967 और 1972 के चुनाव में भी रही। तब आमला क्षेत्र में भी इसी विधानसभा में जुड़ा हुआ था। लेकिन इस विधानसभा सीट की एक विशेषता यह रही है कि 1957 से 2018 के चुनाव तक सर्वाधिक बार निर्दलीय उम्मीदवारों के जीतने का रिकार्ड दर्ज है।
जिले की किसी भी अन्य भी विधानसभा सीट में ऐसी स्थिति नहीं है और संभवत: मध्यप्रदेश में भी ऐसी कोई विधानसभा सीट नहीं है जहां 14 चुनाव में से 7 बार निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीता है। 1977 में परिसीमन के बाद आमला नई विधानसभा सीट बनी और जिले में 6 विधानसभा सीट हो गई लेकिन 2008 में फिर स्थिति बदली और मासोद विधानसभा का अस्तित्व समाप्त हुआ लेकिन आमला और मुलताई दोनों विधानसभा सीट बनी रही। 2023 में भी यही स्थिति है।
संयुक्त सीट के आखिरी विधायक रहे श्री गर्ग

1957, 1962, 1967 और 1972 तक मुलताई विधानसभा सीट में आमला शामिल था और इस मुलताई आमला संयुक्त सीट के 1972 में हुए आखरी चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में श्री राधाकृष्ण गर्ग चुनाव जीते। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी को पराजित किया था। और 1977 के अगले चुनाव में मुलताई विधानसभा टूटकर दो भागों में बंट गई और 1977 में आमला विधानसभा सीट के लिए अगल चुनाव हुआ।
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ये जीते निर्दलीय प्रत्याशी | Political News

मुलताई विधानसभा सीट से 1957 से 2018 के बीच हुए चुनाव 7 बार निर्दलीय प्रत्याशियों को मुलताई की जनता ने सर आंखों पर बैठाया और विधायक चुना। इनमें 1957 में जीते मारोतीलाल पहले निर्दलीय प्रत्याशी रहे जो विधायक बने।
उसके बाद 1972 में श्री राधाकृष्ण गर्ग भी स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में निर्वाचित हुए। 1977 के अगले विधानसभा चुनाव में भी पंवार समाज के मनीराम बारंगे लगातार 1980 में भी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में दोनों चुनाव जीते।
13 साल बाद 1993 के विधानसभा चुनाव में फिर एक बार कुंबी समाज के डॉ. पंजाबराव बोडख़े निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। अगला 1998 का चुनाव भी निर्दलीय प्रत्याशी के नाम रहा और ग्वालियर के रहने वाले डॉ. सुनील मिश्रा(सुनीलम) भारी मतों से चुनाव जीत गए। इसके बाद 2003 का चुनाव भी उनके नाम रहे। इसके बाद निर्दलीय प्रत्याशी को सफलता नहीं मिली।
कांग्रेस से 3 नेता बने विधायक

1962 के चुनाव में पहली बार कांग्रेस को इस सीट से सफलता मिली और बालकृष्ण पटेल लगातार 1967 तक चुनाव जीतते रहे। इसके बाद तीन विधानसभा चुनाव तक कांग्रेस को हार मिली और 1985 में अशोक कड़वे कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीते। लेकिन इसके बाद 23 वर्षों तक कांग्रेस इस सीट से जीत के लिए तरस गई और 2008 में सुखदेव पांसे कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीते।
2018 में भी सुखदेव पांसे को कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में इस सीट से सफलता प्राप्त हुई। इस तरह से इस सीट से 1957 से 2018 तक 61 वर्षों में बाल कृष्ण पटेल, अशोक कड़वे और सुखदेव पांसे को मिलाकर पांच बार कांग्रेस को जीत का अवसर मिला।
भाजपा के लिए मुश्किल रही यह सीट | Political News

1967 में पहली बार जनसंघ (अब भाजपा) से बल्लाभाऊ मुलताई विधानसभा सीट से मैदान में उतरे लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 1972 में पृथ्वीनाथ भार्गव वकील भी जनसंघ की टिकट पर चुनाव हार गए। यही स्थिति 1977 में भी रही। और उस समय की जनता पार्टी के प्रत्याशी चुनाव हार गए।
1980 में भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लडऩे वाले शिवचरण अग्रवाल भी इस सीट से सफल नहीं हुए। 1985 के चुनाव में भी भाजपा के मनीराम बारंगे चुनाव हार गए। 1967 के बाद 1990 में पहली बार भाजपा प्रत्याशी के रूप में मनीराम बारंगे इस सीट से चुनाव जीतकर विधायक बने। इस प्रकार 23 वर्ष बाद भाजपा को इस सीट पर सफलता मिली। लेकिन 1993 के चुनाव में भाजपा के मनीराम बारंगे चुनाव हार गए।
1998 में भी भाजपा के अशोक कड़वे चुनाव में सफल नहीं हुए। 2003 में विधानसभा चुनाव में भाजपा के डॉ. जीए बारस्कर को भी निराशा हाथ लगी। इसी सीट से 2008 के चुनाव में भी चंद्रशेखर देशमुख भाजपा की टिकट पर चुनाव में असफल रहे। लेकिन 2013 के चुनाव में भाजपा को दूसरी बार इस सीट पर भारी बहुमतों से विजयी मिली। और चंद्रशेखर देशमुख विधायक निर्वाचित हुए।
लेकिन 2018 के चुनाव में भाजपा के राजा पंवार चुनाव हार गए। अब 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने पूर्व विधायक चंद्रशेखर देशमुख को उम्मीदवार घोषित कर दिया है।
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