लाल बहादुर शास्त्री स्टेडियम में आकर्षक रंगीन आतिशबाजियों के बीच होगा दहन
बैतूल – Dussehra 2022 – अधर्म पर धर्म… असत्य पर सत्य…, बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक पर्व दशहरा तो हम हर साल मनाते और रावण का दहन भी करते हैं लेकिन रावण रूपी लालच, घमंड, क्रोध खत्म होने के बजाए साल-दर-साल बढ़ते ही जा रहा है। यही वजह है कि जिला मुख्यालय पर होने वाले मुख्य कार्यक्रमों में भी प्रतिवर्ष रावण और कुंभकरण के पुतलों का भी कद बढ़ा दिया जाता है। अब इसे महज संयोग ही कहा जाएगा कि एक ओर जहां पुतलों का कद हर साल बढ़ता ही जा रहा है तो वहीं दूसरी ओर देश, समाज में भी रावण रूपी कद कम होने का नाम नहीं ले रहा है। आज हर कहीं रावण रूपी बुराई के रूप में कोई ना कोई दिखाई दे ही देता है। आखिर वह समय कब आएगा जब देश सहित समाज से भी अहंकार, घमंड, क्रोध, लालच, हड़पना रूपी बुराई का कद कम होने लगेगा तभी सही मायने में हमारा दशहरा पर्व मनाना सार्थक हो सकेगा।
दशहरा का 66 वाँ साल
आजादी के बाद बैतूल में श्रीकृष्ण पंजाब सेवा समिति के द्वारा 1957 में दशहरा मनाने की परंपरा शुरू की थी। उस समय समिति के अध्यक्ष बसंत लाल कपूर हुआ करते थे। और रावण और कुंंभकरण के पुतले समिति के सदस्य तैयार करते थे। यह परंपरा निर्विघ्र रूप से आज भी चली आ रही है। पहले छोटे-छोटे पुतले बनाए जाते थे। धीरे-धीरे इन पुतलों का आकार बड़ा किया जाने लगा और इस साल लाल बहादुर शास्त्री स्टेडियम में रावण-कुंभकरण के जो पुतले तैयार किए गए हैं उनकी ऊंचाई 55 और 50 फीट रखी गई है। समिति के सदस्य दीपक सलूजा का कहना है कि कोविड-19 के दौरान यह साइज रावण की 35 और कुंभकरण की 30 फीट रखी गई थी। पिछले साल रावण 50 और कुंभकरण 45 फीट ऊंचे बनाए गए है।
पुतले बनाने की मुस्लिम परिवार ने की थी शुरूवात
श्री कृष्ण पंजाब सेवा समिति के सदस्य दीपक सलूजा ने बताया कि दशहरा पर रावण और कुंभकरण के पुतले का दहन करने के लिए पुतले बनाने की शुरूवात आजाद वार्ड के मुस्लिम परिवार के हसीब भाई की माँ —ने की थी। बाद में उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं होने पर उनके बेटे हसीब ने पुतले बनाने की शुरूवात की। लंबे समय तक इस परिवार ने रावण और कुंभकरण के पुतले बनाए। कुछ सालों से पुतले बनाने का काम समिति ने भोपाल की रिंकू बसंल और उनकी टीम को दे दिया है जो बैतूल आकर पुतले तैयार करते हंै।
परंपराओं का किया जा रहा निर्वहन
नवरात्र पर्व और दशहरा को लेकर शहर में बहुत उत्साह रहता है। खासतौर पर श्रीकृष्ण पंजाब सेवा समिति के द्वारा पूरे नौ दिनों तक रामलीला का मंचन कराया जाता है। इस दौरान श्रीराम बारात निकाली जाती है। श्रीराम बारात और दशहरा पर्व को लेकर भण्डारे का आयोजन भी किया जाता है। श्री सलूजा ने बताया कि भण्डारे का आयोजन वह लोग करते हैं जिनकी मनौती पूरी होती है। आज की स्थिति में 20 साल तक के भण्डारों की बुकिंग हो चुकी है। सबसे खास बात यह है कि रावण और कुंभकरण के जो पुतले दहन होते हैं उसकी जली हुई लकडिय़ां घर ले जाई जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि इन लकडिय़ों के रखने से आगजनी की घटना नहीं होती है और प्रेतबाधाएं भी घर में प्रवेश नहीं करती है।
देश के बंटवारे के पहले मांगी जा रही है मनोती
रावण-कुंभकरण के दहन के बाद मांगी जाने वाली मनोती की परंपरा देश के बंटवारे के पहले से चली आ रही है। अखण्ड भारत में भी यह परंपरा जीवित थी जिसके प्रमाण पंजाबी मंदिर में आज भी विद्मान है। श्री सलूजा ने बताया कि मंदिर में मनोती मांगने के लिए डायरी रखी हुई हैं जिस पर मनोती लिखी जाती और पूरी होने पर दूसरी डायरी में लिखा जाता है। इसके बाद जिसकी मनोती पूरी होती है वह भण्डारा करता है। श्री सलूजा का कहना है कि शुरू से अभी तक का रिकार्ड मंदिर में मौजूद है। पाकिस्तान से जो डायरी आईं थी उस समय का रिकार्ड उर्दू में लिखा हुआ है।
बैतूल में मनता है ऐतिहासिक दशहरा
जिला मुख्यालय बैतूल के लाल बहादुर शास्त्री स्टेडियम में मनाया जाने वाला दशहरा पर्व का त्यौहार ऐतिहासिक रूप से मनाया जाता है। इस तरह से त्यौहार आसपास के शायद ही किसी जिले में मनाया जाता है। दशहरा पर्व पर स्टेडियम में जितनी जनता परिवार सहित जुटती है इतनी कहीं भी नहीं जुटती है। इसके अलावा श्री कृष्ण पंजाब सेवा समिति द्वारा की जाने वाली रंगीन आतिशबाजी का नजारा भी खासा मनमोहक होता है। यही वजह है कि आसपास के कई जिलों में बैतूल का दहशरा प्रसिद्ध है।
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