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AI वरदान या अभिशाप: इंसानी सभ्यता के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कितना खतरनाक या कितना फायदेमंद

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AI : दुनिया में एक नई बहस तेज हो गई है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI क्या इंसानों से आगे निकल जाएगा. क्या आने वाले समय में AI लेखक, पत्रकार, शोधकर्ता और स्टॉक मार्केट एडवाइजर की जगह ले लेगा. अगर मशीनें खुद सोचने और फैसले लेने लगीं, तो इंसानों की ज़रूरत कितनी रह जाएगी. यही सवाल आज मानव सभ्यता के सामने सबसे बड़ा माथापच्ची बन चुका है.

जंग के मैदान में AI की तगड़ी एंट्री

AI अब युद्ध के मैदान में भी गेम चेंजर बन चुका है. भारत में जम्मू कश्मीर के अखनूर सेक्टर में भारतीय सेना हाईटेक रोबोटिक म्यूल्स का इस्तेमाल कर रही है. ये मशीनें मुश्किल और जोखिमभरे इलाकों में पेट्रोलिंग, निगरानी और गोला-बारूद पहुंचाने जैसे काम करती हैं. ताजा सैन्य अभ्यास ऑपरेशन त्रिशूल और मरु ज्वाला में भी AI टेक्नोलॉजी वाले हथियार और सिस्टम शामिल किए गए. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम की मदद से पाकिस्तान की एयर थ्रेट को पहचानकर समय रहते नष्ट कर दिया गया.

आतंकियों को बिना बॉर्डर पार किए मार गिराने की क्षमता

AI की मदद से अब किसी दुश्मन या आतंकी ठिकाने को बिना सीमा लांघे ही तबाह किया जा सकता है. यानी दुश्मन को खत्म करने के लिए कारपेट बमबारी के ज़माने की जरूरत घट रही है. रियल टाइम डेटा, टारगेट लॉक और नेविगेशन सिस्टम की मदद से कई सौ किलोमीटर दूर से कुछ सेकंड में हमला संभव हो चुका है. यही वजह है कि आने वाले समय में जंगों में जमीन के साथ साथ स्पेस आधारित GPS, कम्युनिकेशन और जासूसी सैटेलाइट्स ही असली हथियार साबित होंगे.

AI खुद फैसले लेने लगे तो क्या होगा

DRDO भी ऐसे ह्यूमनॉइड रोबोट तैयार कर रहा है जिन्हें खतरनाक मिशन में सैनिकों की तरह भेजा जा सके. चीन ने MANUS नाम का AI एजेंट विकसित किया है जिसके बारे में दावा है कि वह बिना ज्यादा कमांड के खुद सोचकर फैसला ले सकता है. सवाल उठता है कि अगर AI इंसानों जैसा सोचने लगे तो क्या वह इंसानी नियंत्रण से बाहर जा सकता है. इसी तरह एलन मस्क का AI GROK भी अपने बेबाक और कई बार विवादित जवाबों को लेकर चर्चा में है.

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क्या इंसान मशीनों के गुलाम बन जाएंगे

AI के विकास को लेकर दो राय बन चुकी हैं. एक पक्ष मानता है कि जैसे बिजली ने पूरी दुनिया बदल दी, वैसे ही AI मानव जीवन को आसान और शक्तिशाली बनाएगा. दूसरा पक्ष मानता है कि अगर मशीनें ही सोचने और फैसले करने लग गईं, तो इंसान मशीनों के गुलाम भी बन सकते हैं. इसलिए कानून, नैतिकता और सुरक्षा के लिहाज से AI को नियंत्रित और संतुलित रखना बेहद जरूरी है.

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