आज हम मेकअप को खूबसूरती और ग्लैमर से जोड़कर देखते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि मेकअप का आविष्कार सुंदर दिखने के लिए नहीं, बल्कि जिंदगी बचाने के लिए हुआ था? हजारों साल पहले, जब इंसान जंगलों में रहता था, तब उसने मिट्टी, राख और पौधों के रंगों से चेहरा रंगना शुरू किया था — न कि आकर्षक दिखने के लिए, बल्कि खुद को बचाने के लिए।
जंगल में ऐसे हुई मेकअप की शुरुआत
प्राचीन काल में इंसान लाल मिट्टी, कोयले की राख, और पौधों के रस का इस्तेमाल चेहरे पर करता था ताकि वह जंगल में शिकारियों और जंगली जानवरों से छिप सके।
कई बार आंखों के नीचे रंग लगाने का मकसद था धूप और धूल से बचाव।
इतना ही नहीं, यह भी माना जाता था कि रंगीन चेहरा और शरीर बुरी आत्माओं से रक्षा करते हैं।
मिस्र (Egypt) जैसे देशों में लोग अलग-अलग तरह के फेस पेंट से अपनी जाति और समूह की पहचान भी जताते थे।
सभ्यता बढ़ी तो मेकअप बन गया सजावट का ज़रिया
समय के साथ जैसे-जैसे सभ्यताएं विकसित हुईं, वैसे-वैसे मेकअप का उद्देश्य बदलाव के दौर से गुज़रा।
लोगों ने इसे सौंदर्य बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करना शुरू किया।
राजघरानों की रानियां और कुलीन महिलाएं चेहरे पर प्राकृतिक रंग और तेल लगाने लगीं।
यही से मेकअप धीरे-धीरे सजावट का प्रतीक बन गया।
डार्क एज में चर्च ने लगाया था मेकअप पर प्रतिबंध
मध्यकाल यानी डार्क एज (Dark Ages) में यूरोप के चर्च ने मेकअप पर रोक लगा दी।
उस समय माना गया कि चेहरे को रंगना धार्मिक रूप से अनुचित है।
जो लोग मेकअप करते थे, उन्हें समाज में गलत नज़र से देखा जाता था।
लेकिन इतिहास में एक रानी ऐसी भी थीं जिन्होंने इसे फिर से लोकप्रिय बनाया — ब्रिटेन की क्वीन एलिज़ाबेथ। उन्होंने चेहरे के दाग-धब्बे छिपाने के लिए मेकअप का इस्तेमाल किया।
फिल्मों ने मेकअप को बना दिया फैशन का हिस्सा
20वीं सदी की शुरुआत में जब फिल्मों का दौर शुरू हुआ, तो मेकअप ने एक नया मोड़ लिया।
एक्ट्रेसेस ने स्क्रीन पर बेहतर दिखने के लिए काजल, पाउडर, लिपस्टिक जैसे प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल शुरू किया।
धीरे-धीरे सिनेमा से निकलकर मेकअप आम लोगों की ज़िंदगी में उतर आया।
भारत में भी फिल्मों के ज़रिए मेकअप का ट्रेंड बढ़ा और आज यह फैशन और आत्मविश्वास दोनों का प्रतीक बन गया है।





