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Bihar Election 2025: मुस्लिम वोटरों की सियासत और समीकरण

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Bihar Election 2025: बिहार चुनाव 2025 में सबसे ज्यादा चर्चा मुस्लिम वोटरों की हो रही है। यह समुदाय राज्य की राजनीति में बड़ा रोल निभाता है। करीब 17 प्रतिशत आबादी और लगभग 1.25 करोड़ मतदाता होने के बावजूद मुस्लिमों की विधानसभा में मौजूदगी हमेशा से सवालों के घेरे में रही है। इस बार चुनाव में यह समुदाय किसके साथ जाएगा, यह सबसे बड़ा राजनीतिक सवाल है।

मुस्लिम वोटरों का महत्व

बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से लगभग 50 सीटों पर मुस्लिम वोटर गेम चेंजर साबित हो सकते हैं। सीमांचल के किशनगंज, कटिहार, अररिया और पूर्णिया जिलों की 24 सीटें मुस्लिम वोटरों के प्रभाव में आती हैं। इनमें से कई सीटों पर मुस्लिम वोट शेयर 30 से 40 प्रतिशत तक है। यही वजह है कि सभी पार्टियां मुस्लिम वोट बैंक को साधने की पूरी कोशिश कर रही हैं।

चार हिस्सों में बंट सकते हैं मुस्लिम वोटर?

आरजेडी मानती है कि मुस्लिम वोट उसके साथ मजबूती से खड़ा है। कांग्रेस को भी अपने पारंपरिक वोट बैंक पर भरोसा है। जेडीयू को उम्मीद है कि नीतीश कुमार की पासमांदा रणनीति और सरकारी योजनाओं का फायदा उसे मिलेगा। बीजेपी भी इस समुदाय को लुभाने की कोशिश कर रही है। वहीं, प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी मुस्लिम उम्मीदवारों को आबादी के अनुपात में टिकट देने का दावा कर रही है। इसके अलावा, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM भी मैदान में है, जो पिछले चुनाव में 5 सीटें जीतकर सभी को चौंका चुकी थी।

वोट बैंक की राजनीति और हकीकत

इतिहास बताता है कि बिहार में मुस्लिमों को हमेशा वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया गया है। आज़ादी के बाद पहले विधानसभा चुनाव में 24 मुस्लिम विधायक बने थे, जिनमें से ज्यादातर ऊँची जाति से थे। इस बार भी सवाल यही है कि मुस्लिम वोट बैंक एकजुट रहेगा या फिर चार धड़ों में बंट जाएगा

पिछली बार क्या हुआ था?

2020 के चुनाव में NDA और महागठबंधन के बीच वोटों का अंतर सिर्फ 11 हजार था, जबकि सीटों का अंतर 15 का रहा। AIMIM को करीब 25 लाख वोट मिले, जिससे मुस्लिम वोटों में बंटवारा हुआ और महागठबंधन को नुकसान उठाना पड़ा। यही वजह है कि इस बार सभी पार्टियां वोटों के विभाजन को रोकने की कोशिश कर रही हैं।

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2025 में मुस्लिमों की पसंद कौन?

बिहार की सियासत में मुस्लिम वोटर अब सिर्फ जातीय समीकरण से नहीं बल्कि विकास, रोज़गार और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर भी सोच रहा है। सवाल यही है कि क्या इस बार यह वोट बैंक महागठबंधन के साथ रहेगा, नीतीश कुमार के साथ जाएगा या फिर ओवैसी और प्रशांत किशोर जैसे नेताओं के पक्ष में खड़ा होगा।

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