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अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत-चीन-रूस समीकरण पर जॉन बोल्टन का बयान

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अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत-चीन-रूस समीकरण पर जॉन बोल्टन का बयान,अंतरराष्ट्रीय राजनीति में इस समय सबकी नज़रें भारत, चीन और रूस के रिश्तों पर टिकी हुई हैं। इसी बीच अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और डोनाल्ड ट्रंप के कड़े आलोचक जॉन बोल्टन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट में उनकी मौजूदगी पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। बोल्टन ने कहा कि मोदी की यह यात्रा पश्चिमी देशों के लिए बुरी खबर है, खासकर इसलिए क्योंकि इस शिखर सम्मेलन में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी मौजूद रहे।

पश्चिमी रणनीति पर झटका

एक टीवी इंटरव्यू में बोल्टन ने कहा कि इसमें अच्छी खबर कम और बुरी खबर ज़्यादा है। दशकों से पश्चिमी देश भारत को सोवियत संघ और रूस की छाया से बाहर लाने की कोशिश करते रहे। अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर क्वाड (QUAD) जैसे सुरक्षा मंच बनाए गए ताकि भारत चीन और रूस से दूरी बना सके। लेकिन अब हालात उलटे दिख रहे हैं। मोदी का SCO में शामिल होना और पुतिन के साथ मंच साझा करना पश्चिमी रणनीति के लिए झटका है।

ट्रंप प्रशासन पर हमला

बोल्टन ने इस पूरे मुद्दे पर पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि ट्रंप प्रशासन ने दशकों की अमेरिकी कोशिशों को कमजोर कर दिया। भारत पर लगाए गए ट्रंप के टैरिफ़ बड़ी गलती साबित हुए, जिससे अमेरिका-भारत रिश्ते बिगड़ गए। नतीजतन, भारत एक बार फिर रूस के करीब आता दिख रहा है और अब चीन के साथ सामरिक तालमेल की संभावना भी बढ़ी है।

क्वाड और पश्चिम की चिंता

बोल्टन के अनुसार, क्वाड को एशिया में चीन के प्रभाव को संतुलित करने के लिए अहम मंच माना जाता है। लेकिन भारत की SCO में सक्रियता और पुतिन के साथ प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी क्वाड की रणनीतिक ताकत को कमजोर कर सकती है। पश्चिम लंबे समय से भारत को चेतावनी देता रहा है कि उसका सबसे बड़ा खतरा चीन है, लेकिन अब भारत का रूस और चीन दोनों के साथ मंच साझा करना चिंता का विषय है।

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भारत की स्वतंत्र कूटनीति

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत आज एक स्वतंत्र और बहुध्रुवीय विदेश नीति अपना रहा है। एक ओर वह अमेरिका और उसके सहयोगियों के साथ क्वाड में है, तो दूसरी ओर रूस और चीन के साथ भी समन्वय बनाए हुए है। यही संतुलन भारत की कूटनीति की खासियत है, लेकिन यही बात अमेरिकी रणनीतिकारों के लिए असहज स्थिति भी पैदा करती है।

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