Search ई-पेपर ई-पेपर WhatsApp

अर्चना ने ठुकराया पटवारी से ब्याह, बोली – इतनी कम तनख्वाह में कैसे जिएंगे?

By
On:

भोपाल: एक पटवारी के चक्कर में अर्चना तिवारी मध्य प्रदेश से नेपाल तक पहुंच गई। उसके परिवारजनों ने उसकी शादी किसी पटवारी से तय कर दी थी और अर्चना को ये गवारा नहीं था। आखिर अर्चना को पटवारी क्यों पसंद नहीं था? पटवारी कौन होता है? इन सभी विषयों के बारे में हम आपको बताएंगे।

पटवारी से तय हुई थी अर्चना तिवारी की शादी

कटनी की अर्चना तिवारी काफी पढ़ी लिखी थी। वह वकालत कर रही थी। साथ ही सिविल जज की तैयारी करती थी। परिवार वालों ने शादी पटवारी से तय की थी। पेशे के हिसाब से देखें तो दोनों का प्रोफाइल मैच नहीं करता था। हालांकि अर्चना तिवारी करियर के लिहाज से अभी शादी के लिए तैयार नहीं थी।
 
राजस्व विभाग की रीढ़ होते हैं पटवारी

यूं तो पटवारी राजस्व विभाग की रीढ़ माने जाते हैं। जमीनी स्तर पर जमीन और अन्य काम संभालने की जिम्मेदारी उनके ऊपर ही होती है। आइए आपको बताते हैं कि मध्यप्रदेश में पटवारियों का काम क्या है। इसके साथ ही इन्हें सैलरी कितनी मिलती है।

23 से 24 हजार के बीच होती है शुरुआती सैलरी

मध्यप्रदेश में नवनियुक्त पटवारी का वेतन 23 से 24 हजार के बीच में होता है। हालांकि उन्हें अपने क्षेत्र में आने जाने और अन्य भत्तों का प्रावधान भी रहता है। एक वरिष्ठ पटवारी ने अपना नाम न छापने की शर्त पर नवभारत टाइम्स डॉट कॉम को बताया कि वर्तमान में सबसे वरिष्ठ पटवारी का वेतन अधिकतम ₹65000 है।

एमपी में अलग-अलग बंटा है काम

मध्य प्रदेश के राजस्व विभाग को अलग-अलग हिस्सों में बांटा गया है। सबसे पहले जिला होता है, जिसका प्रमुख कलेक्टर होता है। उसके बाद अनुभाग होते हैं, जिसे एसडीएम लीड करते हैं। उसके बाद तहसील कार्यालय में तहसीलदार प्रमुख होता है। इसके नीचे राजस्व न्यायालय होते हैं, जिसे नायब तहसीलदार लीड करते हैं। इसके बाद आता है राजस्व निरीक्षक कार्यालय। यहां राजस्व निरीक्षक तैनात होते हैं। राजस्व निरीक्षक कार्यालय के नीचे 'हल्का' होते हैं। अंतिम छोर में आने वाले हल्का का प्रमुख ही पटवारी कहलाता है। हल्का को दूसरे शब्दों में इस तरह समझा जा सकता है कि एक ग्राम पंचायत को एक हल्का माना जा सकता है। वर्तमान में मध्य प्रदेश में औसत रूप में देखा जाए तो एक पटवारी के हिस्से में 3 से 5 गांव आते हैं। जिनकी राजस्व संबंधी संपूर्ण जानकारी, संपूर्ण कार्य पटवारी को निर्वहन करना होता है।

हल्का कार्यालय में बैठते हैं पटवारी

अपने काम को पूरा करने के लिए पटवारी अपने कार्य क्षेत्र के हल्का कार्यालय में भी जाते हैं। ग्राम पंचायत भवन में बैठते हैं। इसके अलावा राजस्व निरीक्षक कार्यालय, तहसील कार्यालयों में भी पटवारी अपने दायित्व का निर्वहन करते हैं। मध्यप्रदेश शासन ने प्रत्येक ग्राम पंचायत को एक पटवारी हल्का का नाम दिया है। पटवारी हल्का में एक पटवारी की नियुक्ति किए जाने का प्रावधान है। इस लिहाज से मध्य प्रदेश में 23,000 ग्राम पंचायत हैं तो 23000 पटवारियों का होना जरूरी है, लेकिन वर्तमान में करीब 18000 पटवारी ही कार्यरत हैं। ऐसे में 5000 पटवारियों के पद खाली हैं। इन 5000 ग्राम पंचायतों की जिम्मेदारी भी पटवारियों को दी गई है।

ये है योग्यता

वर्तमान में पटवारी बनने के लिए आवेदक को स्नातक होना अनिवार्य है। मध्य प्रदेश कर्मचारी चयन मंडल की तरफ से आयोजित परीक्षा मैं मेरिट अंक आने पर ही आप पटवारी बन सकते हैं। इसके साथ ही आवेदक के पास कंप्यूटर आधारित दक्षता प्रमाण पत्र (CPCT) होना अनिवार्य है।

एक पटवारी सब पर भारी

राजस्व विभाग के जमीनी कार्यकर्ता को पटवारी कहा जाता है। यह कर्मचारी पूरे राजस्व विभाग की रीढ़ होता है। कई जगह पर तो मजाक में कहा जाता है- 'एक पटवारी सब पर भारी'। सुनने में भले यह मजाक लगे, लेकिन पटवारी के पास वाकई इतने अधिकार होते हैं कि उसकी कलम को बड़ा से बड़ा अधिकारी भी नहीं मिटा सकता। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि पटवारी अपने मन से कोई भी काम करते हों। वह नियम के अनुरूप ही काम को अंजाम देते हैं। पटवारी के बनाए पंचनामा रिपोर्ट को कलेक्टर हो या कोर्ट सभी मानते हैं। पटवारी को अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से भी पहचाना जाता है। हालांकि पूरे देशभर में पटवारी नाम ज्यादा प्रचलित है।

हर राज्य में अलग हैं इनके नाम

उत्तर प्रदेश और हरियाणा में इन्हें 'लेखपाल' कहा जाता है। महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक में 'तलाठी' पुकारा जाता है। दक्षिण भारत के राज्यों में पटवारी को 'कारनाम', 'शानबोगरु', 'पटेल' के नाम से भी जाना जाता है।

पटवारी का इतिहास

भारत में पटवारी का इतिहास 1882 से ज्ञात होता है। बॉम्बे प्रेसीडेंसी, 1882 के गजेटियर के अनुसार, तलाठी के जिम्मे आठ से दस गांव होते थे। तलाठी को उन गांवों में रहना पड़ता था। जब देश आजाद हुआ, तब भी पटवारी का पद बना रहा। ऐसा इसलिए क्योंकि राजस्व ग्राम और वन ग्रामों में रिकॉर्ड मेंटेन करने के लिए ग्राम स्तर की कर्मचारी की आवश्यकता हमेशा बनी रहती है।

पटवारी का मूल काम

पटवारी का मूल काम राजस्व से जुड़े मामले ही होते हैं। किसी भूमि का क्रय विक्रय करवाना, जमीन का नाप कराना हो , नक्शा बनवाना हो, राजस्व अभिलेखों को अपडेट करना, भूमि का आवंटन करवाना, आपदाओं के दौरान आपदा प्रबंधन, एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के खेतों के हस्तांतरण करना, राष्ट्रीय कार्यक्रमों में भी सहयोग के साथ साथ कृषि गणना, पशु गणना, अन्य आर्थिक सर्वेक्षण में सहयोग, विकलांग पेंशन, वृद्धावस्था, आय व जाति प्रमाण पत्र देसी कई मामलों में कार्य करते हैं। खेतों में फसल की बुवाई, फसल बीमा योजना का सर्वे आदि कई कार्य पटवारी के जिम्मे होते हैं।

For Feedback - feedback@example.com
Home Icon Home E-Paper Icon E-Paper Facebook Icon Facebook Google News Icon Google News