Search ई-पेपर ई-पेपर WhatsApp

क्रिकेट में वर्कलोड मैनेजमेंट और उसकी जरुरत

By
On:

हाल के कुछ समय में भारतीय क्रिकेट टीम में खिलाड़ियों के वर्कलोड मैनेजमेंट (कार्यभार प्रबंधन) को लेकर कई बातें होती रही हैं। तेज गेंदबाज जसप्रीत बुमराह के मामले में ये चर्चा सबसे अधिक हुई है। कार्यभार प्रबंधन का मतलब किसी खिलाड़ी को पर्याप्त आराम देना है ताकि व चोटों से बचे रहे। ये विशेषकर गेंदबाजों के लिए होता है। ये एक तय प्रक्रिया के तहत ही होता है।
वर्कलोड मैनेजमेंट का लक्ष्य खिलाड़ियों को चोटों से बचाते हुए लंबे समय तक उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन तय करना है। इसमें बीसीसीआई, नेशनल क्रिकेट एकेडमी (एनसीए), चयन समिति, कोचिंग स्टाफ और कप्तान ये सभी मिलकर खिलाड़ियों के खेलने और आराम करने का कैलेंडर बनाते हैं। खासतौर पर तेज गेंदबाजों और तीनों प्रारुपों में खेलने वाले खिलाड़ियों के लिए यह और भी जरूरी हो जाता है, क्योंकि लगातार क्रिकेट खेलने से उनका शरीर जल्दी थकता है और चोट लगने का खतरा बढ़ जाता है।
बेंगलुरु स्थित एनसीए  इस प्रक्रिया में प्रमुख भूमिका निभाता है। यह खिलाड़ियों की फिटनेस, रिकवरी और वर्कलोड का विस्तृत डेटा रखता है और बीसीसीआई को सुझाव देता है। साल 2023 में बोर्ड  ने 20 खिलाड़ियों के एक पूल पर बनाया था जिनकी फिटनेस पर विशेष निगरानी रखी जा रही है। मुख्य कोच, कप्तान और चयनकर्ता इन सुझावों के आधार पर मिलकर निर्णय लेते हैं कि कौन-सा खिलाड़ी कब खेलेगा और कब उसे आराम दिया जाएगा।
वर्कलोड मैनेजमेंट आईपीएल जैसे घरेलू टूर्नामेंटों में भी यह लागू होता है। हालांकि वहां फ्रेंचाइजी अपने स्टार खिलाड़ियों को आराम देने में कतराती हैं पर बीसीसीआई इसपर नजर रखती है। यो-यो टेस्ट और डेक्सा स्कैन जैसे फिटनेस टेस्ट को अनिवार्य करके बोर्ड  खिलाड़ियों की फिटनेस सुनिश्चित करता है।

For Feedback - feedback@example.com
Home Icon Home E-Paper Icon E-Paper Facebook Icon Facebook Google News Icon Google News