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Election : प्रदेश में पहले विधानसभा फिर हो सकते हैं दूसरे चुनाव

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भोपाल – जैसा की लंबे समय से प्रतीत हो रहा था कि सरकार मध्यप्रदेश में नगरीय निकायों एवं पंचायतों के चुनाव कराने में ज्यादा रूचि नहीं रख रही है, क्योंकि 2020 से ही नगरीय निकायों के चुनाव नहीं हुए हैं और इन सभी निकायों में शासकीय अधिकारी प्रशासक की भूमिका निभा रहे हैं। अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा नेताओं और भाजपा जनप्रतिनिधियों के कहने पर ही काम हो रहे हैं। यदि चुनाव होंगे तो कुछ नगरीय निकायों में कांग्रेस का भी कब्जा होगा।

इसी तरह से पंचायत चुनाव को लेकर भी बार-बार आरक्षण और परिसीमन को लेकर तारीखें बदलती रही। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि पंचायत चुनाव भी 2023 के विधानसभा चुनाव के बाद ही हो सकते हैं। वैसे भी जिसकी सरकार प्रदेश में होती है उन्हीं के हिसाब से निर्वाचित सरपंच, जनपद अध्यक्ष काम करने लगते हैं। क्योंकि सरकार के साथ से नहीं चलेंगे तो पंचायतों को फण्ड और कई मामलों में परेशानी का सामना करना पड़ेगा।मध्यप्रदेश में पंचायत की सभी संस्थाओं में लंबे समय से चुनाव ड्यू है और पुराने पदाधिकारियों को जिम्मेदारी तो मिली है लेकिन अधिकार कम हो गए हैं। पंचायत क्षेत्र में भी सरकारी अधिकारी ही अपने हिसाब से व्यवस्था कर रहे हैं इसलिए पंचायत क्षेत्र में भाजपा नेताओं एवं जनप्रतिनिधियों की बात महत्व रख रही है।

मध्यप्रदेश में पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव फिलहाल नहीं होंगे। इन्हें विधानसभा चुनाव-2023 के बाद ही कराया जाएगा। ये बात लगभग तय हो गई है। यानी गांव-शहर की सरकार के लिए अभी इंतजार करना होगा। ये चुनाव रिजर्वेशन, रोटेशन और परिसीमन की राजनीति में फंस गए हैं। ओबीसी रिजर्वेशन का सरकार का दांव पहले ही सुप्रीम कोर्ट में उल्टा पड़ चुका है। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अभी पंचायत-निकाय चुनाव में लंबा वक्त लग सकता है।

दरअसल, तीन साल से अटके पड़े पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव कराने से सरकार हिचक रही है। पंचायतों में दो साल कार्यकाल बढ़ाकर सरपंचों को एडजस्ट किया गया। पॉलिटिकल स्ट्रेटजी के चलते निकाय आरक्षण कोर्ट में पहुंच गया, तो पंचायत चुनाव में रोटेशन-परिसीमन के साथ ओबीसी आरक्षण में भी कानूनी पेंच फंस गया।

जानकारों का कहना है कि अब इन दांव-पेंच से बाहर आने के बाद चुनाव प्रक्रिया शुरू होने में एक से डेढ़ साल का वक्त लगेगा। ऐसे में दोनों चुनाव कोर्ट के फैसले के बाद ही होंगे। हालांकि सरकार भी यही चाहती है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले स्थानीय निकायों के चुनाव न हों।

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