Search ई-पेपर ई-पेपर WhatsApp

‘नीतीश नहीं तो कोई नहीं’, क्या बिहार में फिर से ‘दुलरुआ’ के सामने होंगे PM मोदी के ‘हनुमान’?

By
On:

पटना. क्या बिहार चुनाव 2025 में ‘दुलरुआ’ वर्सेज ‘हनुमान’ में फिर से जंग देखने को मिलगा? बिहार की राजनीति में पिछले कुछ दिनों से हलचल अचानक से बढ़ गई है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लेकर सियासत पहले से ही तेज थी, लेकिन अब केंद्रीय मंत्री और एलजेपी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान की भी मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा ने माहौल को गर्मा दिया है. पीएम मोदी के ‘हनुमान’ ने सर्वे रिपोर्ट के उत्साह में आकर बड़ी बात कह दी है, जिससे पीएम मोदी के ‘दुलरुआ’ यानी नीतीश कुमार को मिर्ची लग सकती है. दूसरी ओर नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार का दावा है कि उनके पिता ही एनडीए के मुख्यमंत्री उम्मीदवार होंगे. ‘नीतीश नहीं तो कोई नहीं’ वाला बयान एनडीए में तूफान मचा सकता है. चिराग पासवान की एंट्री ने इसमें और नया ट्विस्ट दे दिया है.

इस बार के बिहार चुनाव में युवा नेतृत्व की पूरी फौज उतरने जा रही है, जिसमें प्रशांत किशोर, तेजस्वी यादव, चिराग पासवान, निशांत कुमार, मुकेश सहनी और पूर्व आईपीएस शिवदीप लांडे जैसे चेहरे शामिल हैं. निशांत कुमार के बयान के बाद चिराग पासवान भी एनडीए के भीतर अपनी स्थिति मजबूत करने में जुट गए हैं. चिराग ने हाल के बयानों में नीतीश के नेतृत्व पर सीधा सवाल तो नहीं उठाया, लेकिन उनकी सक्रियता और युवा वोटरों को लुभाने की कोशिशें यह संकेत देती हैं कि वह भविष्य में बड़ी भूमिका की तैयारी में हैं. सी वोटर के हाल के सर्वे में उनकी लोकप्रियता में 2% की बढ़ोतरी से वह काफी उत्साहित नजर आ रहे हैं.

 

क्या नया सियासी समीकरण बनने जा रहा है?
दूसरी ओर, बीजेपी की चुप्पी इस सियासी ड्रामे को और रहस्यमय बनाती है. हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के बयान, जिसमें उन्होंने सम्राट चौधरी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात कही थी, ने जेडीयू खेमे में हड़कंप मचा दिया. हालांकि, बीजेपी ने बाद में स्पष्ट किया कि नीतीश ही एनडीए का चेहरा होंगे, लेकिन संसदीय बोर्ड की मंजूरी की शर्त ने संदेह के बीज बो दिए. नीतीश कुमार की उम्र और स्वास्थ्य को लेकर विपक्ष, खासकर तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर, लगातार सवाल उठा रहे हैं.

 

सर्वे से बिहार में भूचाल?
हाल के सर्वे में नीतीश की लोकप्रियता में 3% की गिरावट देखी गई, जबकि तेजस्वी पहले और प्रशांत किशोर दूसरे स्थान पर हैं. वक्फ बिल पर नीतीश के बीजेपी के समर्थन ने उनके मुस्लिम वोट बैंक को भी नाराज किया है, जिससे जेडीयू की स्थिति कमजोर हो सकती है. बीजेपी के पास बिहार में जेडीयू से ज्यादा सीटें हैं और वह महाराष्ट्र की तर्ज पर अपना मुख्यमंत्री लाने की रणनीति बना सकती है. सम्राट चौधरी का नाम लव-कुश समीकरण के तहत उछाला जा रहा है, लेकिन नीतीश के कद का कोई नेता बीजेपी के पास अभी नहीं है. बीजेपी की चुप्पी इस बात का संकेत हो सकती है कि वह माहौल भांप रही है.

चिराग पासवान क्या फिर करेंगे खेला?
दूसरी ओर, चिराग पासवान एनडीए में अपनी पार्टी की सीटों की संख्या बढ़ाने और युवा वोटरों को आकर्षित करने की कोशिश में हैं. 2020 में नीतीश की सीटें कम करने में उनकी भूमिका अहम थी और अब वह केंद्र में मंत्री होने का फायदा उठाकर बिहार में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं. अगर बीजेपी नीतीश को ही चेहरा बनाए रखती है तो एनडीए 2010 जैसा बहुमत हासिल करने की कोशिश करेगा. लेकिन नीतीश की घटती लोकप्रियता और मुस्लिम वोटों का नाराज होना चुनौती है. अगर बीजेपी सम्राट चौधरी या किसी अन्य नेता को आगे लाती है तो जेडीयू के साथ गठबंधन टूट सकता है. नीतीश के पास अभी भी विपक्ष के साथ जाने का विकल्प बचा है, हालांकि यह मुश्किल लगता है.

कुल मिलाकर बिहार की सियासत में नीतीश कुमार का अनुभव, बीजेपी की रणनीति, चिराग की महत्वाकांक्षा, नए युवा नेताओं का उभार और विपक्ष की आक्रामकता मिलकर एक जटिल सियासी समीकरण बना रहे हैं. फिलहाल, नीतीश का नेतृत्व एनडीए का आधिकारिक चेहरा बना हुआ है, लेकिन बीजेपी के अगले कदम और चुनावी सर्वे इस खेल को नई दिशा दे सकते हैं.
 

For Feedback - feedback@example.com
Home Icon Home E-Paper Icon E-Paper Facebook Icon Facebook Google News Icon Google News